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सुबोधिनी टीका सूर्याभस्यामलकल्पास्थितभगवद्वन्दनादिकम्
३३ वराभिगमणजोगं करे: कारपेह करिता य कारवित्ता य खिःपाभव एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणह ॥ सू. ४ ॥
छाया--ततः खलु तस्य मूर्याभत्य अयमेापः आध्यात्मिक चिन्तितः कल्पितः प्रार्थितः मनोगलः संकल्पः समुदपद्यत । एवम् खल श्रमणो भगवान महावीरो जम्बूद्रोपे द्वीपे भारते वर्षे आमलकल्पाया नगर्याः बहिराम्रशालवने चैत्ये यथामतिरूपमवग्रहमवगृह्य संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति, तन्महाफलं खलु तयारूपाणां भगवतां नामगोत्रस्यापि श्रवणतया किमङ्ग पुनः अभिगमन-वन्दन नमस्यन प्रतिपृच्छन पर्युपासनया?
'तएणं तस्स मूरियाभस्स' इत्यादि।
मूत्रार्थ-(तएणं) इसके बाद (तस्त मूरियाभस्स) उस मूर्याभदेव को (इमे एयारूवे) इस प्रकार का यह (अज्झथिए. चिंतिए, कप्पिए, पस्थिए, म गोगए सकापे समुपज्जित्था) आध्यात्मिक, चिन्तित, कल्पित माथित मनोगत सकल्प उत्पन्न हुआ (एवं खलु समगे भगवं महावीरे) श्रमग भगवान् महावीर (जंबुद्दीवे दोवे भारहेवासे) जम्बूद्रोपान्तर्गत-मर जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में (आमलकमाए णयरोए बहिया) आमलकल्प नगरी के बाहर (अंबसालपणे चेइए) आम्र साजन उद्यान में (अहापडिरू उग्गहं उग्गिण्हित्ता) यथाप्रतिरूप अवग्रह को प्राप्तकर (संजमेणं तवसा अप्प ण भावेमाणे विहाइ) संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विरा. जमान हैं (तं महाफलं खलु तहारूवाण भगवताणणामगोयम्स नि सघणयाए, किगपुण अभिगमणवंदण णमंसणपडिपुच्छणपज्जुवामणयाए) अतः जब तथारूप
'तएण तस्स मूरियाभम्स' इत्यादि।
सत्राथ:-(तरगं) . त्या२ ५छ। (नस्स मुरियाभस्स) ते सूर्यामहेवने (इमेएयारूवे) ॥ प्रमाणे त ॥ (अज्झत्धिए. चिंतिए. कपिए, पस्थिए, मणोगए, संकप्पे समुपन्जित्था) माध्यामि, यातित प्रार्थित भाग ५ पन्न थये। (एव खलु समणे भगव महावीरे) श्रम लगवान महावीर (नवुटीवेदीवे भारहेवासे) मूद्वीपमा मावेसा मध्यभूद्र पना मस्तक्षेत्रमा (आमलकप्पाप
यरीए बहिया) मामा नारीनी पा२ (अंवसालवणे बेइए) मासास पन उद्यानमा (अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिहिना) यथाप्रति३५ अपने भगवान (सजमेण तवसा अप्पाण भावमाणे विहरइ) संयम भने तपथा पोताना मात्मान भावित ४२ता विश २ छ. (तं महाफल खल तहाख्वाण मगवताणणामगोयस्य वि सवणयाए किमगपुण अभिगमणदणणमसणपडिपुच्छणपज्जु