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सुबोधिनो टीका. सू. ६५ सूर्याभविमानवण नम्
पव्ययगा दारुइज्जपव्वयगा दयसंडवा दयसंचगा दगमालगा दगपा-- सायगा उसड्डा खुड्डा खुड्डगा अंदोलगा पक्खंदोलगा स्वरयवासया अच्छा जाव पडिरूवा।
तेसु णं उप्पायपव्वएसु जाव परखंदोलएसु बहूई हलालणाई कोंचालणाइं गरुलालणाई उण्णयालणाई पणयासणोइं दीहासणाई सवालणाई पखासणाई मगरालणाई उसभासणाई सीहासणाई पउमालणाई दिसासोवत्थियाई सव्वरयणामयाइं अच्छाइ जाव पडिरूवाइं ॥ सू० ६५ ॥
छायो-तासां खलु क्षुद्राऽक्षुद्रिकाणां वापीनायावत् शिलपक्तिकानां तत्र तत्र-तस्मिन् तस्मिन् देशे बहव उत्पातपर्वतकाः नियतिपर्वतकाः जगतीपर्वतका: दारुपर्वतकाः, दकमण्डपाः द कमञ्चकाः दकमालको दकप्रासादकाः उन्मृताः क्षुद्रक्षुद्रकाः आन्दोलकाः पक्षान्दोलकाः सर्वरत्नमयाः अच्छाः यावत् प्रतिरूपाः ।
'तालि णं खुड्डाखुड्डियाण' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(तालि ण खुड्डाखुड्डियाण वावीणं जाब विलपतियाण) इन क्षुद्र-छोटी अक्षुद्र-वडी बावडीओं से लेकर विलपंत्तियों तक (तत्थ२ तहिं२ देसे) प्रत्येक स्थल के एक२ भाग में (वहवे उप्पायपव्ययगा) अनेक उत्पाद पर्वत हैं (नियइयपव्ययगा) अनेक लियतिपर्वत हैं (जगई पव्ययगा) अनेक जगती पर्वत हैं (दारुइज्जपव्ययगा) अनेक दारुपर्वत है (दगमंडवा, दगमंचका दगमालगा, दगपासायगा, उसङ्खा, खुड्डा खुड्डगा, अंदोलगा पक्खंदोलगा सव्वरयणमया अच्छा जाव पडिरूवा) अनेक फटिकमण्डप हैं.
'तासि णं खुला खुडियाण' इत्यादि । सूत्रार्थ-(तासि खुडी खुङियाण :वावीण' जाब विलपंतियाण) -क्षुद्र-नानी, अक्षुद्र-मोटी पावोथी भांडीन सितम्या सुधीन ( तत्थ २ तहि २ देसे) हरे ४२४ स्थानमा हरे ४२४ भागमा (वहवे उप्पायपचयगा) घl Sपाद तो छ. (नियइयपत्प्रयगा) घा नियति पत। छ. (जगह
पव्ययमा) ! ४ाती तो छ. (दारुइज्जपत्र यगा) घा हार पतो छ. (दगम डवा, दगमंचका दगमालगा, दगपासायगा, उसड्डा खुड्डा खुड्डगा,अंदो
लगा, पक्ख दोलगा, सवरयणामया अच्छा जाब पडिरूवा) घाटि भयो છે, ઘણું સ્ફટિકમંચે છે, ઘણા સ્ફટિક પ્રાસાદ છે, એમાં કેટલાંક ઊંચા છે. કેટલાક ઘણા