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________________ १८४ राजप्रश्नीयसूत्रे सर्वरत्नमय्यः अच्छा यावत् प्रतिरूपाः महत्यो महत्यो गोकलिञ्ज चक्रसमानाः प्रज्ञाप्ताः श्रमणाऽऽयुष्मन् ! तेषां खलु तोरणानां पुरतो द्वौ द्वौ सुपतिष्ठको मज्ञप्तौं, ते खलु नानाविधमसाधनभाण्डविराजिता इव तिष्ठन्ति । सर्वरत्नमयाः अच्छाः यावत् प्रतिरूपाः। तेषां खलु तोरणानां पुरतो द्वे द्वे मनोगु. हरियगस्स बहुपडिपुण्णाओ विव चिट्ठति) ये छोटे २ पात्र निर्मलजल से परिपूर्ण हैं अतः पांच प्रकार के अनेकविध मणि निसमें लगे हुए हैं ऐसे हरितवर्णवाले फलों से ये बहुत सुन्दर ढंग से भरे हुए न हो मानो ऐसे मालूम पड़ते हैं। (सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिहवाओ महया महया, गोकलिंजरचकसमाणीमो पण्णतायो) ये सब छोटे २ पात्र सर्वथा रत्नमय है : निर्मल है, यावत् प्रतिरूप है, पृथुल (बडा) हैं अतएव हे श्रमण आयुष्मन् ! गाय को चारा जिसमें रखते हैं ऐसे वंश निर्मित टोकरी के समान ये आकार में गोल गोल कहे गये हैं। (तेसि ग तोरणाणं पुरो दो दो सुपट्ठा पण्णत्ता) इन तोरणों के आगे दो दो सुमष्ठिक पात्र विशेष कहे गये हैं। (गाणाविह पसाहणभंडविरइया, इव चिट्ठति) ये सुप्रतिष्ठक नाना प्रकार के प्रसाधनों के साधनभृत सर्वोपधि आदिउपकरण वाले पात्रों से भरे हुए जैसे प्रतीत होते हैं । (सम्बरयणा मया अच्छा जाव पडिस्वा) ये सब सर्वथा रत्नमय हैं, निर्मल हैं यावत् पतिरूप हैं। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो मणोगुलियाओ, पण्णताओ) तोरणानी सामे ये नाना पात्र उपाय छ. (अच्छोदगपरिहत्थाओ, णाणामणि पंचवष्णस्स फलहयगम्स बहुपडिपुण्णोओ विव चिट्ठात) मा नाना नाना પાત્રે નિર્મળ જલથી પરિપૂર્ણ છે, એથી પાંચ જાતના અનેકવિધ મણિ જટિત હોવાથી આ બધા પાત્ર હરિત વર્ણવાળા સુંદર ફળથી ભરેલા હોય તેમ દેખાય છે. सवर यणामईओ अच्छाओ जाच पडिरुवाओ महया महया गोकलिंजर चक्करमाणीयो पष्णताओ) मा गधा नाना पात्र सर्वथा रत्नमय छ, નિર્મળ છે, યાવત્ પ્રતિરૂપ છે, પૃથુલ છે એથી જ હે શ્રમણ આયુષ્યન્ ! ગાયને ચાર જેમાં મૂકવામાં આવે છે તેવા વાંસના ટેપલા જેવા ગોળ આકૃતિવાળા કહેવાય છે. ( तेसि ए॒ तोरणाण पुरी दो दो मुइट्ठा पणत्ता) तारानी साभे २५ो सुप्रति उपाय छ. (णाणाविह पसाहणभंड विरइया, इव चिट्ठति) એ સુપ્રતિષ્ઠકે નાના પ્રકારના પ્રસાધના સાધનભૂત સર્વોષધિ વગેરે ઉપકરણ વાળા पात्राथी मरेशानी म सागे छ. ( सवरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा) मे | सर्वात्मना रत्नमय छ, नि छ यावत प्रति३५ छ, (तेसिं थे तोर
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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