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________________ सुबोधिनी टोका. सू. ५९ सूर्याभविमानवनम् ३७३ स्तकाः। तेषां खलु नोरणानां प्रत्येकं पुरतः ₹ द्वे. शालभञ्जिके मज्ञप्ते. यथा अधः तथैव । तोपां खलु तोरणानां पुरतो हौ हौ नागदन्तौ प्रज्ञप्ती, यथाऽधः यावद् दामानि । तेषां खलु तोरणानां पुरतो हौ द्वौ हयसंघाटौ गजसंघाटौ नरसंघार्टी किन्नरसघाटी किंपुरुषसंघाटौ लहोरगसंघाटौ गन्धर्वसंघाटौ कृष्णभसंघाटो सर्वरत्नमयौ आच्छौ यावत् प्रतिरूपौ, एवं पती वीथी: में १६-१६ तोरण कहे गये हैं। ये सब तोरण (णाणामणिमया, णाणामणिमएसु ग्व मेसु उवणि विठ्ठसन्निविट्ठा जाब पउमहत्थगा ) अनेक प्रकार के भणियों के बने हुए हैं, तथा अनेक प्रकार के मणियो के बनेहुए स्तभों ऊपर के निश्चलरूप से स्थित हैं, यावत् उत्पल हस्तक हैं। (तमिण तोरणाण पत्तेयं पुरओ दो दो मालसंजियाओ पणत्ताओ) इन तोरणों में से प्रत्येक तोरण के आगे दो दो शालमनिकाए कही गई है। (जहा हेढा तहेव) जिस प्रकार का शाल भजिकाओं का वर्णन ५६ वें मूत्र में किया गया है-उसी प्रकार का इनका वर्णन यहां पर भी जानना चाहिये. (तेणि तोरणाणपुरओ दो दो नागदंता पण्णत्ता,) जहा हेठ्ठा जाब दामा) इन तोरणों के आगे दो दो नागदन्त कहे गये है। जिस प्रकार का वर्णन इनका ६६ वे मूत्र में किया गया है. ऐसा ही वर्णन इनका यहां पर भी दाम पर्यन्त कहा गया। जानना चाहिये. तेसिंण तोरणाण पुरओ दो दो हयलंधाडी, गयसंघाडा नरस'घाडा. किन्नासवाडा किपुरिसघाडा. महोरसंघाडा. गधन्धमघाडा, उसमपंघाडा, मन्ययणामया अच्छा जाय पडिरूवा) उन तोरणो सोण तार! ४ामा माया छ. २al ri al२५ (माणामणिमया, णाणामणिमएमु खंभेमु उपणिटिमन्निविट्ठा जाव पउमहत्थगा)पाना भलिमाथी पता વામાં આવ્યાં છે. તેમજ ઘણા પ્રકારના મણિઓથી બનેલા થાંભલાઓની ઉપર નિશ્ચલ ३५थी स्थित छ. यावत् उत्पात छ. (ते पिणं पनेयं पुरआं दो दो साल मंजियाओ पण्णत्ताओ) मा तोरणमाथी हरे हरे ताणानी सामे गणेल. मि (पूतणीमा)छ. (जहा हेडा तहेत्र) स मानु वर्णन म ५६मां सूत्रमा ४२वाम माव्युछ तेम०४ डी ५९ समन्यु नये. (तेनिणं तोरणाणं पुरओ दो दो नागदंता पण्णत्ता जहा हेडा जाव दामा) At तणनी सामे બબ્બે નાગદંતિ છે ૫૬ માં સૂત્ર પ્રમાણેજ અહીં પણ બધું વર્ણન દામ સુધી समान. (तेसिंणं तोरणाणं पुरओ दो दो ह्यसंघाडा, गयसंघाडा, नरसंघाडा, किन्नरसंघाडा, किंपुरियम घाडा, महोरगस घाडा, गधन्क्सवाडा, उसमसघाडा, सव्वरयणामया अच्छाजाव पडिरूवा) ते तोरणनी सामे ७ य.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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