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श्रमण मग
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त्यःआदक्षिणम रीति, कृत्वा बन्दत नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा निमपरिवार माद्र रिटतः तिमे दिव्य चानविमानमारोहति आरुह्या यामेव दिशेणापादन लामेव दिशा अनि माता
'तएण, से अरियाभ देवे' इत्यादिनाnिiwi टीका-तनः देवकुमारदेवकुमारिकाणी मभिदेवाज्ञा प्रत्यर्पणानन्तरम् खलु मा-पूर्वोक्तः सुयोभा देवा, तां-पूर्वविकृतां दिव्या देवद्रि दिव्या देवयुति दिव्यं देवानुभावं प्रतिसंहरति-स्वशरीर प्रवेगवति, मतिमहत्यः क्षणेने नाकेन सिंगल श्रण कालेना एकाकभुतः-अनेक प्रकोभून इति एकभूतः-एकलं गतः जातःअनूत, शेष स्पष्टम् ॥ Ohifi.
it देवदि को दिव्य देवघति को, और दिव्य देवानुभाव को अपने शरीर में भविष्ट कर लिया : (पर्डिमाहरेत्ता खणेण जागं ए पंगभूए) शरीर में प्रविष्ट करके वह इस प्रकार से एक ही क्षण में एक रूप हो गया. इतएंग" से परियामे देवे समां भाव महावीर तिक्खुतो आयाहिपयाहिण करेह) इसके बाद उस मयोभदेवने श्रमण भगवान महावीर को भीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की (करिता वदह, नमसई) सीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा करके फिर उसने उन्हें चन्दन किया-नमस्कार किया (वादिना नमंसित्ता नियगपरिवारसद्धिं परिवुढे तमे दिवे जाण. त्रिमाण दुरूडई) वन्दना नमस्कार करके फिर वह अपने परिवारजनों के साथ उसी दिव्य धान विमाना पर आरुड हो गया दुरूहिचा जामे दिमि पाउभार तामे दिस पडिगए) आरुद्ध होकर फिर वह जिस दिशा से प्रकट हुआ लाल आया था, उसी दिशा में पीछे चला गया. ।। सू०१० ॥ रेत्ता खरोण नागे अगभूएAli प्रवेश, CHHA EMARATHPAYयोतिएण सेमरिया देवासमण भाव: महावीर तिकखुल आयाहिणापयाविण क्रिरेइ) सारी लिह, भEATSLM 'URArse aur Elay AEResile (करित्त! वंदना सह ३) ત્રણ વખત આણિી પ્રદક્ષિણા કરીને પછી તેણે તેઓ તેઓશ્રીને જિંદા કર્યા नभा२ या (वंदित्ता नमसित्ता नियगपरिवारसद्धि संपरिघुडे तमेव दिन जागत्रिमाण हरूहह) नाम (HP, शन माता रानी अ यया HIGHEथा दुरुहिता जामेव दिसि पाउभा तामेन दिस अडिगाए जाने ती या હતે- તેજ દિશા તરફ પાછો જતો રહ્યો પ્ર સૂત્ર ૫૦ છે