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सुबोधिनी टीका. सू ३७ सूर्याभस्य समुद्धातकरणम् सूर्याभं देवं करतलपरिगृहीतं यावत् वर्द्धयन्ति, वर्द्धयित्वा एवमत्रादिषुः-संदिशन्तु खलु देवानुपियाः! यदस्माभिः कर्तव्यम्, ततः खलु स सूर्याभो देवस्तान् बहून् देवकुमारांश्च देवकुमारीश्च एवमवादीत्-गच्छत खलु यूयं देवानुपियाः! श्रमणं भगवन्तं महावीरं त्रिकृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिणं कुरुत, कृत्वा बन्दध्वम् नमस्यत, वन्दित्वा नमस्थित्वा गौतमादिकानां श्रमणानां
आनंद से हर्षित होने लगा. तब वे जहां सूर्याभदेव था. वहाँ पर आई (उवागच्छित्ता सुरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं जाव बद्धा ति) वहां आकर उन सबने बूर्याभदेव को दोनों हाथों की अंजलि बनाकर यावद उसे मस्तक पर रखकर बधाई दी. (बद्वावित्ता एवं वयासी) बधाई देकर फिर उन्होंने उससे इस प्रकार कहा - (संदिसंतु ण देवाणुपिया ! जं अम्हेहि कायय) हे देवानप्रिय ! आप हमें आज्ञा दें-जो काम हमारे द्वारा होना है उसे करने की (तएणं से मरिया देवे ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारिओ य एवं क्यासी) तब उस सूर्याभदेवने उन सब देवकुमारों से एवं देवकुमारिकाओं से इस प्रकार कहा-(गच्छह ण तुम्भे देवानुप्पिया! समण भगव महावीरं तिवस्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेह) हे देवानमियों? आप लोग जावें और श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा करें (करित्ता वेदह, नमंसह) उनको वंदना करें, नमस्कार करे, (वंदित्ता. नमंसित्ता गोयमाझ्याण समणाणं निग्गंथाणं तं दिव्वं देवि दिव्वं देवजह
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હદ આનંદથી હર્ષ પામ્યાં. ત્યાર પછી તેઓ જ્યાં સૂર્યાભદેવ હતા ત્યાં આવ્યાં. (उवांगच्छित्ता मरियाभे देवे करयलपरिग्गहियं जाव बद्धावेति) त्या मावान તેઓએ સૂર્યાભદેવને બંને હાથની અંજલિ બનાવીને ચાવત તેને મસ્તકે મૂકીને
धामणी भापी (बद्धावित्ता एवं बयासी) यामी माघीन तेभो तेने मा प्रमाणे धुं (संदिसंतु ण देवाणुप्पिया ! ज अम्हें हिं कायव्य) 8 वानुप्रियं! मा५ सभा रे आम सभाराथी थातु डाय तेने ४२वानी माज्ञा से (तएण से मूरियाभे देवे ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारिओ य एवं वयासी) त्यारे તે સૂર્યાલદેવે તે સૌ દેવકુમારે અને દેવકુમારિકાઓને આ પ્રમાણે કહ્યું (ાઇ ण तुम्भे देवाणुपिया ! समण भगवं महावीर तिखुसो आयाहिणण्याहिग करेह ) हेवानुप्रिया! तभे सौ on भने श्रम मावान भापीरनी शुमत प्रक्षिा रीन. (करिता वंदह नमसह) तेगाधीन पहन तथा नम:॥२ । (वादित्ता नम सित्ता गोयमाइयाण', समणाण निग्ग