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________________ राजप्रश्नीयसुत्रे मूलम्त एणं से सूरियाभे देवे चउहि अग्गमहिसीहिं __ जाव सोलमीहि आयरक्खदेवसाहस्तीहि अन्नेहि य वहहिं सूरियाभ विमानवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं देवेहि य सद्धि संपरिबुडे सब्बिति । जाव णाइयरवणं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छई, उवागच्छित्ता नसणं भगवं महावीरं तिकवुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करिता वंदइ नसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-अहं णं भंते ! सूरियाभे देवे देवाणुप्पियाणं बंदामि णमंसामि जाव पज्जुवासामि ॥ सू० २७ ।। छाया-ततः ग्वलु म मर्याभो देवः चतसृभिरग्रमहिंपीभिः यावत् पोडशभिः आत्मरक्षकदेवसाइस्रोभिः अन्यैश्च वहभिः मया भविमान वासिमिः वैमानिकैः देवैः देवीभिश्च साई संपरिवृतः सर्वद्धर्या याद नादितरवेण की ओर के) त्रिसोपान प्रतिरूपक से होकर उस दिव्य यान विमान से नीचे उतरे ।। म. २६।। - 'तएण से मुरियाभे देवे' इत्यादि । मूत्रार्थ-(तएण) जब वे परिपदत्रय के देव एवं उनको देवियाँ उस दिव्य यान विमान से नीचे उतर चुलो. तब इसके पश्चात् वह मूर्या भदेव अपनी चार अग्रमहिपियों के साथ यावत् (सोलमा आयाक्ख देवसाहस्सोहि अन्नेहि य बहूहि मुरियाभविमानवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहि य देवीहि य सद्धि संपरिखुडे) सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के साथ तथा अन्य और भी सूर्याभविमान वासी वैमानिक देव और देयियोंके माथ ત્યાર પછી દક્ષિણ દિશા તરફની ત્રણ સીડીઓ ઉપર થઈને તે દિવ્ય યાન વિમાન માંથી નીચે ઉતર્યા. ૨૬ છે 'तए ण से मुरियाभे देवे' इत्यादि । । सूत्रार्थ-(तए ण) न्यारे तेत्रो परिपहना ? तेहवामी ते दिव्य ચાન વિમાનમાંથી નીચે ઉતરી ગયા. ત્યારે સૂર્યાભદેવ પિતાની ચાર અગ્રમહિલીએ (पटना) नी साथे यावत (सोलसीहिं आयरक्खदेवसाहम्सीहिं अन्नेाहे य वहहिं सरियाभविमानवामीहि वेमाणिएहि देवेहि य देवीहि य सद्धिं मंयरिखुडे) ળ હજાર આત્મરક્ષક દેવેની સાથે તેમજ બીજા પણ સૂર્યાભવિમાનવાસી વૈમાનિક
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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