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________________ सुबोधिनी टीका. सू. २५ भगवद्वन्दनाये मर्यामस्य गमनव्यवस्था नवासिनो बहवो जैमानिका देवाः, च-पुनः परयो नौमानिक्यो देव्यश्च सर्वेन्द्रों यावद्-रवेण सर्वोतिपदादारभ्य 'रवेणे' ति पर्यन्तपद सङ्ग्रहो बोध्यः, तथा-सर्वदा, सर्वधुत्या, सर्वबलेन, सर्वसमुदयेन, सर्वाऽऽदरेण, सर्यविभूत्या, सर्वविभूषया, सर्वसम्भ्रमेण,सर्वपुष्पमाल्यालङ्कारेण, सर्वत्रुटितशब्दसंनिनादेन, मात्या ऋदा, महत्या धुत्या, महताबलेन, महता समुदयेन, महतावरत्रुटितयमकसमकमवादितेन, शङ्ख-पणव--पदह-भेरी-झल्लरी खर. मुखी-हुइक्का-मुरन-मृदा-दुन्दुभि-निर्घोष नादितरवेणे' ति एपां व्याख्या अष्टमसूत्रमोऽवसेया। सूर्याभ देचं पुरत:-अग्रे, पार्श्वतः-पार्श्वयोः, मार्गत:पृष्ठे च समनुगच्छन्ति-परिवेष्टय गच्छन्ति ।। म० २५॥ और अपने २ वेषों से युक्त हुए चल रहे थे. इनके संप्रस्थान के अनन्तर अनेक सूर्याभविमानवासी देव और देवियां चलो. ये सब उस समय अपनी सर्वद्धि से, सर्वधुति से, सर्वबल से, सर्व समुदय से, सर्व आदर से, सर्व विभूति से, सर्व विभूषा से, सर्व संभ्रम से, सर्व पुष्पमालाओं एवं अलंकारों से, सर्व टितों के शब्द संनिनाद से महती ऋद्धि से, महती धुनि से, महायल से, महा समुदाय से चल रही थीं। यहां यह पाठ तथा 'महता वरत्रुटितयमकसमकवादितेन' शंख--पणव--पटह--- भेरी-मल्लरी-खरमुही-हुडका-मुरज नादित रवेणं, तक का पाठ यावत् पद से गृहीत हुआ है। इन पदों की व्याख्या अष्टम सूत्र से जानना चाहिये. ये सब मुर्याभदेव को आगे पीछे एवं दोनों ओर से परिवेष्टित करके चलने लगे ॥ सू० २५ ॥ પિતાના ઉપકરણથી અને પિત પિતાના પહેરવેશથી સુસજજ થઈને ચાલી રહ્યાં હતાં. એમના પછી ઘણું સૂર્યાભવિમાન વારસી દેવ દેવીઓ એ સેવે તે સમયે પિત પિતાની સર્વદ્ધિથી, સર્વઘતિથી, સર્વ oળથી, સર્વ સમુદયથી, સર્વ આદરથી, સર્વ વિભૂતિથી, સર્વ વિભૂષાથી, સર્વ સંભ્રમથી, સર્વ પુષ્પ માલાઓથી અને અલંકારથી; સર્વ ટિતેના શબ્દ સંનિનાદ (ધ્વનિ) થી, મહતી ઋદ્ધિથી, મહતી ઘતિથી मह थी, म समुदायथी यादी रहा तi. डि मापा मार महता वरवटित यमक समक प्रवादितन, शंख, पणव पटह-भेरी प्रल्लरी खरमुही, हुक्का -मुरज नादित रवेण' अधिना पाई 'यापत्' पथी साडीत थयो छ. . પદની વ્યાખ્યા આઠમાં સૂત્રથી જાણી લેવી જોઈએ. એ સવે સૂર્ય દેવની આગળ પાછળ અને ચોમેર વીંટાળાઈને ચાલવા લાગ્યા. એ સૂત્ર રપ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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