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सुबोधिनी टीका. मलाचरणम्
भुजङ्गप्रयात छंदः (२) करणचरणधार प्राप्तपूर्वाब्धिपारं
' शुभतरगुणधारं प्राप्तसंसारपारम् । कलितसकललब्धि लब्धविज्ञान सिद्धि,
गणधरमभिरामं गौतमं तं नमामि ॥२॥ 'करचरणधारं प्राप्नपूर्वाब्धिपारम्' इत्यादि ।
अर्थ-किरणचरणधारम्) करणसत्तरी एवं चरण सत्तरी को अच्छी तरह से धारण-पालन करने वाले (प्राप्तपूर्वाब्धिपारम् ) ग्यारह अंग और चौदह पूर्वरूप समुद्र के पारगामी शुभत्तरगुणधार) शुभतरसम्यग्दर्शनादिकगुणों के धारक (पाप्तसंसारपारम्) संसार के पार को पाने वाले, (कलिनसफललब्धिम्) सकललब्धियों के धारक, (लब्धविज्ञानसिद्धिम्) मन:पर्ययज्ञान के धारी ऐसे (अभिरामम्) सर्वोत्तम (तं गौतमं गणधरं नमामि) जगत्मसिद्ध गौतम गणधर को मैं नमन करता हूं।
भावार्थ-इस श्लोक द्वारा वर्धमान-वीर-भगवान के प्रसिद्ध गौतम गण घर को नमस्कार किया गया है । गौतम गणधरने करणसत्तरी एवं चरणसत्तरी के सेवन से अपने सयम को बहुत अधिक श्रेष्ठतम बना लिया था, चौदह पूर्व के वे पाठी थे सम्यग्दर्शनादिक गुणों की पूर्ण जागृति से उ होंने
'करचरणधारं प्राप्तपूर्वाब्धि-पारम्' इत्यादि ।
अर्थ-(करचरणधारम्) ४२५ सत्तरी भने ५२९ सत्तरीने सास शत धारण तेभर पान ४२ना, (पाप्तपूर्वाब्धिपारम्) अगिया२ मा भने यो ५५३५ २ भुना पा२॥भी, (शुभतरगुणधारम्) शुमा२४ सभ्य शन वगैरे शुने धारय ४२ना। (प्राप्तसंसारपारम्) संसाना पारने पामनारा, (कलित मकललब्धिम् ) मधी सन्धिमाने पार २१२, ( लब्धविज्ञानसिद्धिम् ) मन:पययज्ञानने धारय ४२ना। मेवा (अभिरामम्) सर्वोत्तम (तं-गौतम गणधरं नमामि ) संसार प्रसिद्ध गौतम गधरने हुँ नभन ४३ धु'.
ભાવાર્થ – આ મલેક વડે વર્ધમાન-વીર-ભગવાનના પ્રસિદ્ધ ગૌતમ ગણધરને નમન કરવામાં આવ્યું છે. ગૌતમ ગણધરે કરણ સારી અને ચરણ સત્તર વધી પિતાના સંયમને ખૂબજ શ્રેષ્ઠ બનાવી લીધું હતું. તેઓ ચૌદ પૂર્વના પાકી હતા.
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