________________
१४५
सुबोधिनी टीका. सू. १६ भगवद्वन्दनार्थ सूर्याभस्व गमनव्यवस्था कुमुममिति वा किंशुमकुमुममिति वा पारिजातकुसुममिति वा जातिहिङ्गुलक इति वा शिलापवालमिति वा प्रदालाद्दुर इति वा लोहिताक्षमणिरिति वा लाक्षारसक इति वा कृमिरागकम्बल इति वा चीनपिष्टराशिरिति वा रक्तोपलमिति वा रक्ताशोक इति वा पतकरवीर इति वा रक्तवन्धुजीव इति वा भवेद् एतपः स्यात् ? नो भयमर्थः समर्थः ते खलु लोहिता मणयः इन इष्टतरका एव यारद वर्णन प्रज्ञप्ताः ॥५० १६॥ गोप होता है, बालोवाकर होता है, (संशभरागेइ बा, गुंज द्वरागेइ वा, जामुअणकुसुमेह बा) पाभराग होता है, गुंजाईराग होता है, जपाकुसुम होता है, मिसुयकुसमे ई वा ) किंशुक कुसुम होता है, ( पालियायकुसुमेइ वा ) पारिजातक कुलुम होता है (जाइहिंगुलेइ वा) जातिहिंगुल होता है (मिलप्पवालेइ वा) शिलामवाल होता है (पगलमंकुरेई चा) प्रवाल अंकुरहोता है लोहियक्खमणीई बा, लक्खारसगेई बा) लोहिताक्षमणि होता है, लाक्षारम होता है, (किमिराग कंवलेइ वा, चीणपिट्ठरासीई वा रतुप्पलेइ वा, रना. सोगेई वा, रत्तकणवीरेई वा, रत्तबंधुनीवेई वा) कृमिरागकम्बल होता है, सिन्दुरराशि का पुनविशेष होता है रक्तोत्पल होता है, रक्ताशोकक्ष होता है, रक्त कनेर का वृक्ष होता है, अथवा रक्त बन्धुजीव होता है ? (भवे एयारूवेसिया) इस तरह मणियों का वर्ण होता है ? (जो इणडे सम) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (तेणं लोहियामणी इत्तो इतराए चेव जाव वण्णेणं पणत्ता) क्यों कि वे रक्तमणि इनसे भी अधिक ईष्ट ही यावत् वर्ण से कहे गये हैं। (४) नु घिर हाय छ, भडिप (4131) नु रुधिर डीय छ, मायेन्द्रगोय होय छ, भासविडोय छ, (संमभरागेई वा. गुंजद्धरागेह वा, जामुअणकुसुमेह वा) सध्यारा डोय छ. Yang डोय छ, १५ सुभ जाय छ, (किंसु य कुसुमेह ग)
सूडाना पुण्याडोय छ,(पालिघायकुमुमेह वा) पतित (२सिंगार) पु.५डोय छ (जाइहिंगुलेइ वा) तिYख होय छ, (सिलपवालेइ वा) शिक्षाप्रवास डोय छ, (पवाल अंकुरेइ वा) प्रवास म२ डाय छ, (लोहियक्खमणीह वा लक्खारसगेइ वा) साहितासमलिडोय छ, साक्षा२स डोय छ, (किमिरागकवलेइ वा, चीणपिहरामोइ वा रत्तुप्पलेइ वा, रतासोगेइ वा, रत्तकणवीरेइ वा, रत्तबंधुनीवेई વા) કૃમિરાગ કંબલ હોય છે, સિંદુર રાશિને પંજ વિશેષ હોય છે. રકત ઉત્પલ હોય છે, રકત અશોકવૃક્ષ હોય છે, રકત (લાલ) કનેરનું વૃક્ષ હોય છે. અથવા २४त आधुलपाय छ.(भवे एयारूवेसिया) तो शुमा प्रमाणे १ मणिमानो वर्ष and Tीय छ ? (णो इणढे समहे) मा म समर्थ नथी. (तेणं लोहियामगी इत्तो इतराए चेव जाव वणेणं पण्णता) भ ते २४तमणिमा मेमना ४२तi પણ વધારે ઈષ્ટ યાવત વણોવાળા કહેવામાં આવ્યા છે.