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सुबोधिनीटीका. सू १५ भगवद्वन्दनाथ सूर्याभस्य गमनव्यवस्था इसार इति वा जम्बूफलमिति वा आर्द्रारिष्टक रति वा परभृत इति वा गज इति वा गजकलभ इति वा कृष्णसर्प इति वा कृष्णकेमर इति वा आकाशवण्ड मिति कृष्णाशोक इति वा कृष्ण करवीरइति वा कृष्णबन्धुनीव इति वा, भवेद् एतपःस्थात् ? नो अयमर्थः समर्थः, औपम्यं श्रमणायुष्मन्! ते खलु कृष्ण मणयः इतइष्ट. नरका एप कान्नारका एमागारका मनोज्ञतरका एक वर्ग पात मु.११॥ जैसा वर्ग कालका मेव का वर्णवाला होता है, उसी प्रकार का कृष्णा वाला कृष्णमणि होता है ? तथा जैा अंजनकाला होता है, खंजन काला होतो है, कजल कालो है, गवल-भंसका सींग काला होता है, गवलगुटका काली होती है, भ्रमर काला होता है, भ्रमरावली काली होती है, भ्रमरपनङ्गमार काला होता है, (जंकडे वा) पका हुभा जामुन काठा होता है, (अदारिटेइ वा) आरिष्टकका कोमल शिशु काला होता है, (परहुइए वा) कोयल काली होती है, (गएइं वा) हाथी काला होता है गयकलभेइ वा) हाथी का बच्चा काला होता है, (फिगप्पे वा) मां काला होता है (किण्हकेसरेइ वा) कृपुष्प केसर काला है (आगास त्यग्गलेइ वा) शरत्कालीन आकाश खण्ड काला होता है, (किम्हामोएइ वा) कृष्ण अशोक वृक्ष काला होता है, (किहकणोरेइ वा) का कनेर वृक्ष झाला होता है (किण्हवधुजीवेइ वा), अथवा कृष्णबन्धुजीवक जैसा काला होता है, (भंवे एयारूवे मिया) उसी प्रकार का काला कृष्णमणि होता है यहां यह कथन खंजणेइ वा, कज्जलेइ या गवलेइवा गवलगुलियाइ बा, भपरेड वा, भभरावलियाइ वा भमरपतंगसारेड वा) वर्षानी भेध सण हाय छ, तेमा on ने કૃષ્ણમણિ હોય છે. તેમજ અંજન (મશ) કાળું હોય છે, ખજન કાળું હોય છે, કાજળ કાળું હોય છે, ગવલ ભેંસના સીગ કાળાં હોય છે ગહનગુટિકા કાળી હોય છે, ભમરે કાળા હોય છે ભ્રમરાવલી કાળી હોય છે, ભ્રમર પતંગસાર કાળો હોય છે, (जंबूफलेइवा) पासु आ जाय छ, (अदारिटेइ त्रा) भाद्रष्ट नु
म पच्यु । हाय (परहएइ वा) यक्ष आयु डाय 2. (गएइ वा) हाथी अणे डाय छ, (गयकलभेइ वा) हाथीनु यु डाय छ. (किग्णसप्पेहवा असा जो छायछ, (किण्ह केसरेइ वा) ५ पुष २२ आणी खाय छ, (धागा सस्थिगलेड वा) २२६ दीन २ म ण छ, (किण्यासोएइ चा; BY : वृक्ष अणु डाय छ, (किण्ह कणवीरेइ वा) पY ४२२ वृक्ष । खाय छ (किण्हवंधुनीवेइ वा) अथवा तो ! मधु ७४ अणु अय छे. (भवे एयारूवेसिया) तेवो अणे १ मणि डाय छ. मी 2014 34न प्रश्न