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.. राजप्रश्शीयम् सागरतरंगवसंतलयपउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सप्पभेहि समरीइएहि सउज्जोएहिं णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहि उवसोहिए तं जहा-किण्हेहिं णीलेहि लोहिएहिं सुकिलेहि । तत्थ णं जे मे किण्हा मणीतेग्मि णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए जीमूतएइ वा अंजणेइ वा खंजणेइ वा कज्जलेइ वा गवलेइ वा गवलगुलियाइ वा भमरेइ वा भमरावलियाइ वा भमरपतंगसारेइ वा जंबूफलेइ वा अदारिटेइ वा परहुएइ वा गएइ वा गयफलभेइ किण्ह सप्पेई वा किण्हकेसरेइ वा आगासथिग्गलेइ वा किण्हासोएइ वा किल्क णवीरेइ वा किण्हबंधु जीड वा, भव एयारूव सिया? णो इण? समझे ओवम्म समणाउसो तेणं किण्हा मणी इत्तो इतरोए
चेव कंततराए चेव मणुपणतराए चेव मणामतगए चेव वणेणं पण्णत्ता ॥ सू० १५ ॥ . छाया--ततः स आभियोगिको देवः तस्य दिव्यस्य यानविमानस्य अन्तः बहरामरमणीय भूमिभाग विकरोति । स यथानामकः आलिङ्गपुष्कर मिति वा मृदङ्गपुष्करमिति वा सरस्तलमिति वा करनलमिति वा चन्द्रमप्डः ' 'तए णं आभियोगिए देवे' इत्यादि।
सुत्रार्थ--(तरण) इसके बाद (से आभियोगिए देवे तस्म दिव्वस्स जाणविमाणस अंतो ) उस आंभियोगिक देवने उप दिव्यं यानविमान के भीतर (बममरमणि भूमि भाग) बहुममरमगीय भूमिभाग की (विउबई) विकुर्वणा की (से जहा नामर आलिंगपुक्खरेई वा; मुइगपुकावरेइ ....... 'तए णं से आभियोगिए देवे' इत्यादि। ................
सूत्रा:- (तएण) त्या२ पछी(से आभियोगिए देवे तस्स दिजस्त जाग विमागरम अंतो) ते भालिया ३ ते हिव्य यान विभा1नी २ (यह मन
रमणिज भूमि भाग) आसाम मेवी माय भूभि मानी (बिउन्धह) विgiu ४२॥ -- (से जहा नामए आलिंगपुकवरेहडा, भुइगपुरखरेइ वा, सरलतलेइका,