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सुबोधिनी टीका. सू९ भगवद्वन्दनार्थं सूर्याभस्य गमनव्यवस्था
ऊई. परिणाइं कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामो अप्पेगइया सूरिया भस्स देवस्स वयणमणुवत्तमाणा अप्पेगइया अन्नमन्नमणुवत्तमाणा, अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं, अप्पेगइया धम्मोति अप्पेगइया जीयमेयंत फट्ट सव्विङ्कीए जाव अकालपरिहीणं चैव सूरियाभस्स देवस्स अतिए पाउब्भवंति ॥ सू० १० ॥
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छाया - ततः खलु ते सूर्याभविमानवासिनो बहवो वैमानिका देवाव देव्यपदात्यनीकाधिपतेर्देवस्य अन्तिके एनमर्थ श्रुत्वा निशम्य हृप्यतुष्टयो दृरयाः, अप्येकके वन्दनप्रत्यविकतायै अप्येकके पूजनपत्ययकतायै अप्येह के सत्कारमत्ययिकता एवं संमानप्रत्ययिकता कुतुहलप्रत्ययिकतायै अप्येकके
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'तएण ते सरियाभविमाणवासिणो' इत्यादि ।
सूत्रार्थ - (तरणं) इसके बाद (ते सुरियाभविमाणनासिणो बहवे बेमा णिया देवाय देवोओ य) वे सूर्याभविमानवासी सव वैमानिक देव और देवियां (पापाणियात्रिइस्स देवस्स अंतिए एयम सोचा णिसम्म ) पदात्यनीकाधिपति के मुख से इस बात को सुनकर और उसे हृदय मैं धारण कर (ege जाव हियया) हृष्ट तुष्ट यावत् हृदयवाले हुए. सो इनमें से (अप्पेगइया वंदणवत्तियांए, अप्येगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगड्या सकारवत्तियाए, एवं सम्माणवत्तियाए, कोऊहलवत्तियाए ) कितनेक देव वन्दना करने रूप निमित्त को लेकर, कितनेक मन वचन एवं काय से सविनय पर्युपासना - रने रूप निमित्त को लेकर, कितनेक सत्कार करने
" तरण सुरियाभविमाणवासिणो' इत्यादि
सूत्रर्थ – (तएण ं) त्यार पछी (ते सूरियाभविमाणवासिणो बहवे बेमाणिया देवाय देवीओ) ते सूर्यालविभानवासी सौ वैमानि हेव भने देवी । पायाणियात्रिइस देवस अतिए एयम सोचा णिसम्म ) चायहण सेनाना સેનાપતિના મુખથી આવા તેના વચને સાંભળીને અને તેને હૃદયમાં ધારણા કરીને ( तुङ जान हिया) ड्रप्ट तुष्ट यावत् हृध्यवाजा थया अने तेमनाभांधी (अप्पेगा दणवत्तियाए अप्पेगइया पूर्वणवत्तियाए अप्पेगइया सक्कारકેટલાક દેવેશ વંદના वत्तियाए, एवं सम्माणवत्तियाए कोऊहलवत्तियाए) નિમિત્તને કરવા માટે, કેટલાક મન વચન અને કાયથી સવિનય પયુ પાસના કરવા રૂપ લઇને, કેટલાક સત્કાર કરવાના નિમિત્તને લઇને, કેટલાક કૌતુહુલના ઉપશમન માટે