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________________ ७२५ प्रमैयबोधिनी टीका पद २१ सू० ९ तैजसशरीरावगाहनानिरूपण मात्रा, उत्कृष्टेन यावद् अधोलौकिकग्रामाः, तिर्यग् यावद् मनुष्यक्षेत्रम्, ऊर्ध्वं यावद् अच्युतः कल्पः तावत्प्रमाणा आनत देवस्य तैजसशरीरावगाहनाऽवसेया, 'एवं जाव आरणदेवस्स' एवम्-अनातदेवोक्तरीत्या यावत्ताणतदेवस्य आरणदेवस्य च तैजसशरीरावगाहना एवञ्चवपूर्वोक्तानत देवरीत्यैव विष्कम्भवाहल्येन शरीरप्रमाणमात्रा, आयामेन तु जघन्येन अगुलस्यासंख्येयभागमात्रा उत्कृप्टेन यावद् अधोलौकिकग्रामाः तिर्यग् यावद् मनुष्यक्षेत्रम्, अर्ध्व यावद् अच्युतः कल्पः तावत्प्रमाणा प्राणतारणा आनतदेवस्य तैजसशरीरावगाहनाऽबसेया, 'एवं जान आरणदेवस्स' एवम्-अनात देवोत्तरीत्या यावत्प्राणतदेवस्य आरणदेवस्य च तैजसशरीरावगाहना एवञ्चय-पूर्वोक्तानतदेवरीत्यैव विष्कम्भवाहल्येन शरीरप्रमाणमात्रा, आयामेन तु जघन्येन अलस्यासंख्येयभागमात्रा उत्कृष्टेन यावद् अधोलौकिकग्रामाः तिर्यगू यावद मनुप्यक्षेत्रम्, ऊ यावद् अच्युनः कल्पः तावत्प्रमाणा प्राणतारणदेवयोस्तैजसशरीरावगाहना वोथ्या, 'अच्चुयदेवस्स एवंचेव' अच्युतदेवस्य तैजसशरीरावगाहना एवञ्चैवआनतदेवोक्तरीत्यैव विष्कम्भवाहल्येन शरीरप्रमाणमात्रा, आयामेन जघन्येन अङ्गुलस्याभाग की होती है । उत्कृष्ट अधोलौकिकमाम लक, तिर्थी मनुष्य क्षेत्र तक, ऊपर अच्युत कल्प तक, मारणान्तिक समुद्घात से समवहत आनत देव के तैजसशरीर की अवगाहना जाननी चाहिए। आनत देव की अवगाहना के समान ही प्राणत और आरण देव की तैजस शरीर संबंधी अवगाहना भी समझ लेनी चाहिए । अर्थात् विष्कंभ और बाहल्य की अपेक्षा शरीर प्रमाण, लम्बाई की अपेक्षा जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट अधो लौकिक ग्राम तक, तिछी मनुष्य क्षेत्र तक और ऊपर अच्युत कल्प तक प्राणत और आरण देव के तैजसशरीर की अवगाहना होती है। . अच्युत देव की तैजलशरीर की अवगाहना भी इसी प्रकार है, अर्थात् विष्कम और पाहल्य की अपेक्षा शरीरप्रमाण, लम्बाई की अपेक्षा जघन्य अंगुल के असंख्यातवें आग की, उत्कृष्ट नीचे अधोलौकिकग्राम तक, तिर्थी मनुष्य क्षेत्र હોય છે. ઉત્કૃષ્ટ અલૌકિક ગ્રામસુધી, તિછ મનુષ્ય ક્ષેત્ર સુધી, ઊપર અશ્રુતકલ્પ સુધી, મારણાનિક સમુદ્રઘાતથી સમવહત આનત દેવના સેંજસશરીરની અવગાહના જાણવી જોઈએ આનત દેવની અવગાહનાની સમાન જ પ્રાણત અને આરણ દેશની તૈજસશરીર સંબધી અવગાહના પણ સમજી લેવી જોઈએ. અર્થાત વિઠંભ અને બાહલ્યની અપેક્ષાએ શરીરપ્રમાણ લંબાઈની અપેક્ષા જઘન્ય અંગુલને અસંખ્યાતમો ભાગ, ઉત્કૃષ્ટ અધોલૌકિક ગ્રામ સુધી, તિછિ મનુષ્ય ક્ષેત્ર સુધી અને ઊપર અશ્રુતક૫ સુધી પ્રાણત અને આરણ દેવના તૈજસશરીરની અવગાહના હેાય છે. - બારમા દેવલોકનાટ્યુત દેવની તેજસશરીરની અવગાહના પણ એજ પ્રકારે છે, અર્થાત વિખંભ અને બાહલ્યની અપેક્ષાએ શરીર પ્રમાણ લંબાઈની અપેક્ષાએ જઘન્ય અંગુલના
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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