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________________ प्रमेयपोधिनी टीका पद २१ सू० ९ तैजसशरीरावगाहनानिरूपणम् ७७७ प्रज्ञप्ता ? गौतम ! समयक्षेत्रात् लोकान्तम्, असुरकुमारस्य खल्लु भदन्त ! मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहतस्य तै जराशरीरस्य किं महालया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! शरीरप्रमाणमात्रा विष्कम्भवाहल्येन, आयामेन जघन्येन अङ्गुलस्या संख्येयभागम्, उत्कृष्टेन अधो यावत् कृतीयस्याः पृथिव्या अन्तिमे चरमान्ते तिर्यग् यावत् स्वयंभूरमणसमुद्रस्य बायोवेदि. कान्तः, ऊर्ध्व यावद् ईपत्प्राभारापृथिवी, एवं यावत् स्तनितकुमारतैजसशरीरस्य, वानव्यन्तरज्योतिष्कसौधर्मेशानाश्चैवञ्चैव, सनत्कुमारदेवस्य खलु भदन्त ! मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहतस्य तैजसशरीरस्य किं महालया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! शरीरप्रमाणमात्रा समवहत मनुष्य के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बडी कही है ? (गोयमा! समयखेत्ताओ लोगंतो) समयक्षेत्र-अढाई द्वीप से लेकर लोकान्त तक (असुरकुमारस्स गं भले ! मारणलियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयालरीरस्स के महालिया सरीरोगाणा एण्णता?) हे भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात किये हुए असुरकुमार की शरीरावगाहना कितनी बडी कही है ? (गोयमा ! सरीरप्पमाणमेला) हे गौतम ! शरीर प्रमाण मात्र (विक्खंभशहल्लेणं) विस्तार और मोटाइ में (आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभागं) लम्बाइ में जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग (उकोसेग) उत्कृष्ट (अहे जाव तच्चाए पुढवोए हिडिल्ले चरमंते) अधः यावत् तीलरी पृथ्वी का निचला चरमान्त (तिरियं जाव सयंभूरमणशशुहस्स) तिर्छ चारत रवयंभूरमण समुद्र का (बाहिरिल्ले वेहयते) बाहर का वेदिकान्त (उई जाव इसीपसारा पुढवी) ऊपर यावत् इष स्मारभार पृथयो (एवं जाब णियकुमारतेवगसरीरस्स) इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार के नै जसबारीर की (वाणमंतरजोइलियमोहम्मीसाणगा य एवं माहुना 32ी भाटी छ (गोयम्ग ! समयखेत्ताओ लोगंतो) समय क्षेत्र मलाई દ્વીપથી લઈને લેકાન્તક સુધી ___(असुरकुमारस्स णं भंते १ मारणंतियसमुग्धारणं समोयस तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) भगवन्! भान्ति समुद्रात ४२॥ मयु२४मारनी शरीरामाईना 32ी मोटी ४ीछे १ (गोयमा । सरीरप्पमाणमेत्ता) 3 गौतम । शरी२५मा मात्र (विक्खंभवाहल्लेणं) विस्तार मन भोटया (आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) भां ४.न्य शुसनअसभ्यातमा भाग (उक्कोसेणं) Scष्ट (अहे जाव तच्चाए पुढवीए हिद्विले चरमते) मायावत् त्री पृथ्वीन नियस य२मान्त (तिरिय जाव संयभूरमणसमुदस्स) तिछा यावत् २५५ भूरभा] समुद्रना (बाहिरिल्ले वेइयंते) ५३२ sird (उड्ढे जाव ईसीयपभारापुढवी) ५२ यावत् षत्प्रामा२ वी (एवं जाव थणियकुमारतेयगसरीरस्स) मे १२ यात् स्तनितभा२ना तसशरना (वाणमंतरजोइसिय सोहम्मीसाणगाय एवं चेव) वानव्यन्त न्या_td.४, सीधम् मने शान वानी गरी प्रहारे (सणंकुमारदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्याए" प्र. ९८
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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