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________________ ६९ प्रापमा किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! नानासंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, एवं जलचर स्थलचर खेवराणामपि चतुष्पदपरिसाणामपि, परिसर्माणामपि उर परिसर्पभुजपरिसर्पाणामपि, एवं मनुष्यपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरमपि, असुरकुमारभवनवासिदेवपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरं खलु भदन्त ! कि संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! असुरकुमाराणां देवानां द्विविधं शरीरं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-भवधारणीयञ्च, उत्तरवैक्रियञ्च, तत्र खलु यददो अवधारणीयम्, तत् खलु समचतुरस्त्र संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, तत्र खलु यदद उत्तरवैक्रिय तत् खलु नानासंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, एवं यावत्-स्तनितकुमारदेवपञ्चन्द्रियवै क्रियशरीरम्, एवं यानव्यन्तराणामपपि, नव. (गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! नाना आकारों का कहा है (एवं जलयस्थलयरखपुराण वि) इसी प्रकार जलचरों का, स्थलचरों का और खेचरों का भी (थलचराण वि चउप्पयपरिसप्पाण वि) स्थलचरों में भी चतुष्पद एवं परिसों का भी (परिसप्पाण वि उरपरिसप्पभुयपरिसप्पाण वि) परिसों में भी उरपरिवों का और भुजपरिसों का भी (एवं मणूस पंचिंदिय वेउध्वियसरीरे वि) इसी प्रकार अनुष्य पंचेन्द्रिय वैक्रिय शरीर भी समझ लेवें (असुरकुमार भवण वासी देव पंचिंदिय वेउम्विय सरीरे णं भंते ! कि संठाणसंठिए पण्णत्ते) हे भगवन् ! असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रिय का वैक्रिपशरीर किस आकार का कहा है ? (गोयमा ! असुरकुमाराणं देवागं दुविहे सरीरे पपणत्ते) हे गौतम ! असुरकुमार देवों का शरीर दो प्रकार का कहा है (तं जहा-भवधारणिज्जे य उत्तरबेउब्धिए य) वह इस प्रकार-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय (तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से णं समचउरंससठाणसंठिए पण्णत्ते) उनमें जो भवधारणीय है वह समचतुरस्त्र संस्थान वाला कहा है (तत्थ णं जे से उत्तर वेउचिए से गं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते) उनमें जो उत्तर वैक्रिय है वह अनेक संस्थान वाला पण्णत्ते) गौतम ! नाना रोना छ (एवं जलयर थलयर, खहयराण वि) मेनन अरे जयराना, २५सयराना मने मेयरीना वैठियशरी२ ५ सभरवा (थलयराण वि चउप्पयपरिसप्पाण वि) २थतयशमा ५९ यतु५६ मत परिसपेनि ५ (परिसप्पाण वि उरपरिसप्प भुयपरिसप्पाण वि) ५रिस मा ५ १२५२सपना मत सुपरिसना ५Y (एवं मणूस पंचिंदिय वेउव्वियसरीरे) मे४ प्ररे मनुष्य पथेन्द्रिय वैठियशरी२ प सभरवा. (असुरकुमारभवणवासिदेवपंचिदियवेउब्बियसरीरेणं भंते ! कि संठाणसंठिए पण्णत्ते ? હે ભગવદ્ ! અસુરકુમાર લવનવાસી દેવ પંચેન્દ્રિયના વેક્રિશરીર કેવા આકારના કહ્યાં छ १ (गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहे सरीरे पण्णत्ते) 3 गौतम ! १२शुमार देवाना शरीर में ना ४ii छ (तं जहा-भवधारणिज्जे य उत्तरवेउम्बिए य) ते 20 प्रारेसवधारणीय भने उत्तरवैठिय (तस्थणं जे से भरधारणिज्जे से णं समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते) तेसोमा २ सया२७१५ छ, ते सभयतुरख सथानवाण छ (तत्यणं जे
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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