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________________ प्रयबोधिनी टीका पद १४ सू. ८ चक्रवर्तित्योत्पादनिरूपण, प्रभानरयिकोऽनन्तरमुवृत्त्य चक्रवर्तित्वं लभेत ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, एवं यावद् अरः सप्तमपृथिबी नैरयिका, तिर्यङ्मनुष्येभ्यः पृच्छा, गौतम ! नायमर्थः समयः, भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिष्मवैमानिकेभ्यः पृच्छा, गौतम ! अस्त्येको लभेत, अस्त्येको नो लभेत, एवं बलदेवत्यमपि, नवरं शर्कराजभापृथिवी नैरयिकोऽपि, लभेत, एवं वासुदेवत्वं द्वाभ्यां पृथिव्यां वैमानिकेभ्यश्च अनुत्तरौपपातिकवर्जे यः, शेषेषु नायमर्थः समर्थः, माण्डलिकत्रम् का नारक अनन्तर उद्वर्तन करके चक्रवर्तीपन पाता है ? (गोयमा ! णो ईणट्टे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (एवं जाच अहेसत्तमा पुढवि नेरइए) इसी प्रकार यावत अधः सप्तमी पृथ्वी का नारक के विषय में भी जान लेवें । (तिरियमणुएहितो पुच्छा ?) तिर्यच और मनुष्यों के संबंध में पृच्छा ? (गोयमा ! जो इणठेलमठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (भवणपतियाण मंतर जोइसियवेलाणिएहितो पुच्छा ?) भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों से-पृच्छा ? (गोयमा ! अत्थेगइए ल भेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा) हे गौतम ! कोई प्राप्त करता है, कोई नहीं प्राप्त करता ___ (बलदेवत्तंपि) बलदेवपन भी (नवरं लकरप्पमापुढवि नेरइए वि लभेज्जा) विशेष शर्कराप्रभा पृथ्वी का नारक भी प्राप्त करता है __(एवं वासुदेवत्तं) इसी प्रकार वासुदेवपन (दोहितो पुढचीहितो) दो पृथिवियों से (वेमाणिएहिंतो य अणुत्तरोषयाइयवज्जेहिंतो) अनुत्तरोपपातिक देवों को छोड कर वैमानिकों से भी वासुदेवत्व प्राप्त हो सकता है( सेसेसु गो इणटूठे समढे) शेषों में यह अर्थ समर्थ नहीं (मंडलियत्तं अहेसत्तम। तेउ वाउचज्जे हिंतो) माण्डलिकपन सातवीं पृथ्वी, तेजस्काय, वायुकाय को छोड कर वतन ४॥ २४वती पाणु भगवे छ ? (गोयमा | णो इणढे समढे) गौतम । मा An समर्थ नयी (एवं जाव अहेसत्तमापुढवि नेरइए) मे ५४।२ यावत् ५५ पृथ्वीना ना२४ (तिरियमणुएइिंतो पुन्छा ?) तिय भरे मनुष्याथी ५२७।१ (गोयमा ! णो इणटे समद्रे) गौतम ! २५ मय समय नयी (भवणपति वाणमंतर जोइसिय वैमाणिएहितों पुच्छा) भयनपति पान०य-त२, ज्योति०४ भने वैमानिथी २७१ (गोयमा ! अत्येगइए लभेज्जा, अत्थेंगइए नो लभेज्जा) गौतम ! 5 प्राप्त ४२ छ, १७ प्रा1 नथी ४२ता (बलदेवत्तंपि) ५५ ५ ५५] (नवरं सक्करप्रभा पुढवि नेरइए वि लभेजा) विशेष શર્કરપ્રભા પૃથ્વીના નારક પણ પ્રાપ્ત કરે છે (एवं वासुदेवत्तं) मे रे वासुदेव पा (दोहितो पुढवि हितो) मे श्यायाधी (वेमाणिएहिंतो य अणुत्तरोववाइयवज्जेहिंतो) अनुत्तरी५५ाति४ याने मानिया ५ वासुदेवत्व प्राप्त २७ । छे (सेसेमु णो इगटे समद्वे) नमi मा मथ समय नया (मंडलियत्तं अहेसत्तमा तेउवाउवज्जेहिंतो) Hisasuन सातभी की, ते४२४१य वायुयने होडीत
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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