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________________ प्रमेययोधिनो टीका पद १८ सू० १४ भापाद्वारनिरूपणम् सिद्धिकः खलु पृच्छा, गौतम ! सादिकोऽपर्यवसितः, द्वारम् २०, धर्मास्तिकायः खलु पृच्छा, गौतम ! सद्धिा , एवं गवद् अद्धासमयः, द्वारम् २१, चरमः खलु पृच्छा, गौतम ! अनादिकः सपर्यासितः, अचरमः खलु पृच्छा, गौतम ! अचरमो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथाअनादिको वा अपर्यवसितः, सादिको वा अपर्यवसितः, द्वारग् २२, ॥ सू० १४ ॥ इति प्रज्ञापनायां अगत्याम् अष्टादशं कायस्थितिनामपदं समाप्तम् । टीका-पूर्वमाहारकहरं प्ररूपितम् अथ तत्क्रमादागतं पञ्चदशं भापकादिद्वारं प्ररूपयितुमाह-'भासएणं पुच्छा' हे भवन्त ! भाषकः खलु भापक्रत्वपर्यायविशिष्टः सन् कालापेक्षया (नोभवसिद्धिए नोअअवसिद्धिए णं पुच्छा?) लो भवसिद्धिक नोअभसिद्धिक संबंधी प्रश्न (गोयमा ! सादीए अपज्जवलिए) हे गौतम! सादि अपर्यवसित। (द्वार २०) ___ (धम्मत्थिकाए णं पुच्छा?) धर्मास्तिकाय कितने काल तक धर्मास्तिकाय पने में रहता है, यह प्रश्न ? (गोयला ! सम्बाद) हे गौतम ! सदा काल (एवं जाव अद्धासमए) इसी प्रकार यावत् अद्धासमय । (छार २१)) (चरिमेणं पुच्छा ?) चरल संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! अणादीए सपज्जवसिए) हे गौतम! अनादि सपर्यवसित (अचरिमे णं पुच्छा?) अचरम संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! अचरिमे दुविहे पण्णत्त) हे गौतम ! अचरम दो प्रकार के कहे है (तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा अपज्जवसिए) वे इस प्रकार अनादि अपर्यवसित और सादि अपर्यवलित ( द्वार २२ ) कायस्थितिपद् समाप्त टीकार्थ-पहले आहारक द्वार की प्ररूपणा की गई, अब क्रम प्राप्त पन्द्रहवें भाषक आदि द्वारों की प्ररूपणा की जाती है सो भवसिद्धिा नो अभवसिद्धिएण पुच्छा ?) ने सामने सिद्धि संधी प्रश्न ? (गोयमा ! सादी र अपज्जवसिए) गौ I साडी आयसित (दार २२) (धम्मन्थिकाएणं पुच्छा ?) मास्तिय सा ॥ सुधतिय पएमा छ, से प्रश्न ? (गोयमा ! सव्वद्धं) 3 गोतम | सहाण (एवं जव अद्वा समए) से प्रारे यावत् અદ્ધા સમય (દ્વાર ૨૧) (चरिमेणं पुच्छा १ २२म. सधी प्रश्न ? (गोयमा ! अणादीए सपज्जवसिए) 3 गौतम ! અનાદિ સંપર્યાવસિત. अचरिमेण पुच्छा ? २५५२म समन्धी प्रश्न ? (गोयमा अचरिमे दुविहे पण्णत्ते) गीतम! अयम से प्रारना ४ा छे (तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए सादीए वा अपज्जवसिए) ते मा ४ारे मनाहि म५२ यासत, भने सादी अप सि1. (६२ २२) કાયસ્થિતિ પદ સમાપ્ત ટીકાથ–પહેલા આહારક દ્વારની પ્રરૂપ કરાઈ હવે કમ પ્રાપ્ત પંદરમાં ભાવક
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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