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________________ ३७२. aree कायिकवनस्पतिकायिकप्रत्येकशवीरवादरवनस्पतिकायिकः पृच्छा, गौतम ! जयन्येन अन्तर्मुहर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि निगोदपर्याप्तको वादनिगोदपर्याप्तकः पृच्छा, गौतम ! द्वयोरपि जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेन अन्र्मुहूर्तम् वादरत्रस कायिकपर्याप्तः खलु भदन्त ! वादरत्र सकायिकपर्याप्त इति कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेन सागरोपमशतपृथक्त्वम् सातिरेकम् द्वारम् ४०४॥ जघन्य अन्तर्मुहर्त्त (उकोसेणं संखिज्जाई वाससहरसाई) उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष ( एवं आउकाइए वि) इसी प्रकार अकायिक भी (ते काइयपज्जत्तए णं भंते ते उकाइयपज्जत्तएत्ति पुच्छा ?) हे भगवन्द ! तेजस्कायिक पर्याप्त कितने काल तक तेजस्कायिक पर्याप्तपनेमें रहता है ऐसी पृच्छा ? (गोयसा ! जपणेणं अंतोमुहत (उक्को सेणं संखेज्जाई राईदियाई) हे गौतम । जघन्य अन्तर्मुहर्स, उत्कृष्ट संख्यात रात्रिदिन (वाउकाय वणस्सइकाइय पत्तेयसरीरबादरवणप्फईकाइए पुच्छा ?) वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, प्रत्येकशरीर यादर वनस्पति कायिक संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहणेणं अंतोद्धत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष (निगोदपज्जत्तएबादर निगोदपज्जत्तए पुच्छा) निगोद पर्यातक, बादर निगोद पर्याप्तक संबंधी प्रश्न ? (गोमा ! दोह वि जहणेणं अंतोमुह, उकोसेणं अंतोमुहतं) हे गौतम ! दोनों ही जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त (बादर तसकाइयपज्जत्तए णं भंते! बादर ताइयपज्जतए त्ति कालओ haच्चिरं होइ ? ) हे भगवन् ! बादर नसकाधिक पर्याप्त कितने काल तक बादर सहस्साई) उत्ऱृष्ट सभ्यात भर वर्ष (एवं आउकाइए वि) ४ अरे युायिक य (तेउकाइय पज्जत्तपणं भंते ! ते उकाइए पज्जत्तएत्ति पुच्छा १) हे भगवन् ! तेनायि पर्याप्त हैटसा सभय पर्यन्त ते४२४४ मा रहे छे, वी पृ२७१ (गोयमा ! जहण्णेणं अ तोमुहुत्तं, ढक्कोसेणं संखेज्जाई राईदिग्राई डे गौतम ! धन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सध्यात रात्रि-हिन (वाउकाइय वणस्सइकाइय पत्तेय सरीर बादरवणइकाइए पुच्छा ?) वायुठायिक, वनक्ष्यतिष्ठायिष्ठ, अत्येष्४ शरीर बाहरवनस्पतिठायिष्ठ समन्धी प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई बाससहस्साई ) हे गौतम! धन्य मन्तर्मुहूर्त, उष्ट सध्यात् २ वर्ष (निगोयपज्जत्तए बादरनिगोदयपज्जत्तप पुच्छा १) निगोह पर्याप्त माडरनिगोह पर्याप्त४ समधी प्रश्न ? (गोयमा ! दोहवि जहणेण अंतोमुहुत्त) हे गौतम ! બન્ને જઘન્ય અન્તર્મુહૂત અને ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂ. (बादरतसकाइय पज्जत्तए णं भंते ! बादरतसकाइय पज्जत्तपत्ति कालआ केवच्चिरं होइ ?) હે ભગવન્ ! ખાદરત્રસાયિક પર્યાપ્ત કેટલા સમય સુધી ખાદત્રસક યિક પર્યાપ્ત પણામાં
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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