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________________ प्रबोधिनी टीका पद १७ सू० २१ लेश्या स्थाननिरूपणम् २७७ तया असंख्येयगुणानि, एवं जघन्यानि कृष्णलेश्यास्थानानि तेजोलेश्यास्थानानि पद्मस्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, जघन्यानि शुक्ललेश्यास्यानानि द्रव्यार्थ - तया असंख्येयगुणानि, जघन्येभ्यः शुक्ललेश्षास्थानेभ्यो द्रव्यार्थिकेभ्यो जघन्यानि कापीतश्यास्थानानि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, जवन्यानि नीललेश्यास्थानानि प्रदेशार्थ - तया असंख्येयगुणानि, एवं यावत् शुक्ललेश्यास्थानानि, एतेषां खलु कृष्णलेश्यास्थानानां अपेक्षा कापोतया के जघन्य स्थान सब से कम हैं (जहन्नगा नीललेस्साठाणा Tagयाए असंखेज्जगुणा) नीललेल्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं ( एवं कण्हलेस्साठाणा) इसी प्रकार कृष्णलेश्या के स्थान (तेउलेस्साठाणा) तेजोलेश्या के स्थान (पम्हलेस्साठाणा) पद्मलेल्या के स्थान (जह न्नगी) जघन्य (सुक्क लेस्सा ठाणा) शुक्ललेश्या के स्थान (दव्वट्टयाए असंखेज्ज गुणा) द्रव्य की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं (जहन्नएर्हितो सुक्कलेस्साठाणेहिंतो दव्वएहितो जहन्न काउलेस्सा ठाणा पएसइयाए असंखेज्जगुणा ) जघन्य द्रव्य की अपेक्षा शुक्ललेश्या के स्थानों से. जघन्य कापोतलेश्या के स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं ( जहन्नया नीललेस्सा ठाणा पएसइयाए असंखेज्जगुणा) जघन्य नीललेश्या के स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा हैं ( एवं जाव सुक्कलेस्साठाणा) इस प्रकार यावत् शुक्ललेश्या के स्थान भी समझलेवे (एएस i hearठाणाणं जाव सुक्लेस्साठाणाण य उक्कोसगाणं) इन कृष्णलेश्या के यावत् शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थानों में (दव्वट्टयाए पट्टयाए एसए) द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा और द्रव्य तथा प्रदेशों (दव्त्रट्ठपएसटृयाए सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सा ठाणा) द्रव्य भने प्रदेशानी अपेक्षाओ अयोतसेश्याना भघन्य स्थान मधाथी गोछा छे (जहण्णगा नीललेस्सा ठाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा) नीससेश्याना धन्य स्थान द्रव्यनी अपेक्षा मे अस म्यागया है ( एवं कहलेस्सा ठाणा) से४ अठारे नॄष्ट्युलेश्याना स्थान (तेउलेस्सा ठाणा) तेनेवैश्याना स्थान (पम्हलेस्सा ठाणा) पट्टभसेश्याना स्थान ( जहणणगा ) धन्य (सुक्कलेस्सा ठाणा) शुभ्सलेश्याना स्थान (दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा) द्रव्यंनी अपेक्षाओं असभ्याता है (जहण्णएहिंतो सुक्कलेस्साठाणेर्हितो दव्त्रदृएहिंतो जहण्ण काउलेस्सा ठाणा पएस याए असंखेज्जगुणा) ४धन्य द्रव्यनी अपेक्षा मे शुद्ध सेश्याना स्थानीयी धन्य भयोतोश्याना स्थानं अद्वेशानी अपेक्षा असातगा छे (जहण्णगा नीललेस्सा ठाणा खेज्जगुणा) ४वन्य नीसवेश्याना स्थन् प्रदेशोनी अपेक्षाखे असंख्यात सुकलेस्सा ठाणा) प्रहारे यावत् शुम्ससेश्याना स्थान समन्न्वा. (एएसिणं कण्डलेस्मा ठाणाणं जाव सुक्कलेस्सा ठाणाण य उक्कोसगाणं) मा दृष्युसेश्याना यावत् शुभ्ससेश्याना उत्žष्ट स्थानामां (दुवाए पएसटुयाए दुव्त्रदृपएसट्टयाए) द्रव्यनी अपेक्षा पएस याए असंछे ( एवं जाव
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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