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________________ histant diet पद १७ ० १६ लेश्यापरिणमन निरूपणम् २०७० छाया -कति खलु भद्दन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! पड्लेश्याः प्रज्ञताः, तद्यथाकृष्णलेश्या यावद् शुक्ललेश्याः, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया तद्वर्णतया तद्गन्धतया तद्सतया तत्स्पर्शतया भूयो भूय परिणमति ? इन्त, गौतम ! कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया यावत् भूयो भूयः परिणमति, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया यावद भूयो भूयः परिणमति ? गौतम ! तद्यथा नाम क्षीरं दुष्यं प्राप्य शुद्धं वा वस्त्रं रागं प्राप्य तद्रूपतया यावत् तत्स्पर्शतया भूयो लेश्यावक्तव्यता शब्दार्थ - (कह णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ ?) हे भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही हैं ? (गोमा ! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ) हे गौतम ! छह लेश्याएं कही है (तं जहा - कण्हलेस्सा जाब सुकलेस्सा) कृष्णलेल्या याथत् शुक्ललेश्या (से नृणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प) हे भगवन् ! कृष्णलेइया नीललेल्या को प्राप्त करके (ता रूवाए) उसी रूप में (ना वण्णत्ताए) उसी वर्ण में (ता गंधसाए) उसी गंधपने में (ता रसताए) उसी रस में (ता फासत्ताए) उसी स्पर्श के रूप में (भुज्जो भुंज्जो परिणामह) पुनः पुनः परिणत होती है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प) कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर (ता ख्वता जाव भुज्जो भुज्जो परिणम ) तद्रूपता से थावत् पुनः पुनः परिणत होती हैं (सेकेणणं भंते ! एवं बुच्चइ) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता हैं (nurलेसा नीलले पप्प) कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर (ला रुवत्ताए जाच भुज्जो २ परिणामह) तद्रूपता से थावत् पुनः पुनः परिणत होती है (गोमा ! से जहा नामए खीरे दूसिं पप्प) जैसे कोई दूध दूष्प अर्थात् खटाई લેશ્યા વક્તવ્યતા 1 (कइणं भंते । लेस्साओ पण्णत्ताओ ?) से भगवन् । श्याओ सी डी छे ? (गोयमा । छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ) हे गौतम ? येश्याम ही छे (तं जहा - कण्हलेप्सा जाव सुक्कलेस्सा) તે આ પ્રકારે છે કૃષ્ણવેશ્યા યાવત શુકલેશ્યા. (से नूणं भंते । कण्हलेस्सं पत्र) हे भगवन् । इष्णुोन्यावाणा नीससेश्याने प्राप्त पुरीने (ता रूवत्ताए ) ०४ ३५भ' (ता वण्णत्ताए) ते वाशुभा (ता गंधत्ताए) मे धभां (ता रसत्ताए) ते रसभ (ता फासत्ताए) से स्पर्शना उपमा (भुज्जो भुज्जो परिणम इ) पुनः पुनः परित थाय छे (हंता गोयमा ) डा गौतम' ! ( कण्हलेस्सा नीललेस्सं पाप) सॄष्णुलेश्या नीससेश्याने आप्त थने ( ता वत्ताए जाव-भुज्जो भुज्जो परिणम ) त६३यताथी यावत् पुनः पुनः परित थाय छे. i (सेकेणट्टे भंते ! एवं चुच्च३) हे भगवन् | शा हेतुश्री शेषु उडेवांय छे (कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प) ष्णुसेश्यां नीसोश्याने प्राप्त थधने (ता रूयत्ताए' जाव भुज्जो - भुज्जो परिणम इ)
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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