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श्री वीतरागाय नमः श्रीजैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्य श्री घासीलाल महाराज विरचितया
प्रमेयवोधिन्याख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् ॥ श्री-प्रज्ञापनासूत्रम् ॥
(चतुर्थो भागः)
सप्तदशं लेश्यापदं प्रारभ्यते मूलमू-'आहारसमसरीरा उस्सासे कम्मवन्नलेसासु ।
समवेयण समकिरिया समाउया चेव बोद्धव्वा । १॥ छाछा-आहारः १, समशरीराः २, उच्छ्वासः ३, कर्म ४ वर्ण ५ लेश्याः ६।
समवेदनाः ७ समक्रियाः ८ समायुष्काश्चैत्र ९ बोद्धव्या ॥१॥ टीका-पोड शे पदे प्रयोगपरिणामस्योक्तत्वेन परिणामसादृश्याल्लेश्यापरिणामं प्ररूप. यितुं सप्तदशे पदे पदेशका वक्ष्यन्ते तत्र सर्वप्रथमं प्रथमोद्देशकार्थसंग्रहगाथा माह-आहारसमसरीरा उस्सासे कम्मवन्नलेसानु । समवेयणसमकिरिया समाउया चेव बोद्धव्या ॥१॥
सत्तरहवां लेश्यापद प्रारंभ शब्दार्थ-संग्रहणी गाथा का शब्दार्थ-(१) (आहार) आहार (२) (समसरीरा) समशरीर (३) (उस्ताले) उच्छाल (४-६) (कम्मवनलेसासु) कर्म, वर्ण, लेश्या (७) (समवेयण) समवेदना (८) (समकिरिया) समक्रिया (९) (समाउया) समायुष्क (चेव) तथा (बोव्या ) जानना चाहिए। ____टीकार्थ-सोलहवें पद में प्रयोग परिणाम की प्ररूपणा गई है और लेश्या भी एक प्रकार का परिणाम है, अतः परिणाम की सहशता के कारण सत्तरहवें इस पद में लेश्या की परूपणा करने के लिए छह उद्देशक कहते हैं। सर्वप्रथम पहले उद्देशक के अर्थो का संग्रह करनेवाली गाथा कही जाती है
સત્તરમું લેશ્યા પર Ava4-16 याने। Atथ-(१ आहार) माह।२ (२ समसरीरा) समशरीर (3 उस्सासे) नास (४-६ कम्मवन्नलेसासु) भ, व सेश्या (७ समवेयण) समवेदना (८ समकिरिया) समय ( समाउया) सभायु ४ (चेव) तथा (बोद्धव्वा) at नये
ટીકાર્થ–સોળમા પદમાં પ્રચાગ પરિણામની પ્રરૂપણ કરાઈ છે અને વેશ્યા પણ એક પ્રકારનું પરિણામ છે, અતઃ પરિણામની સદશતાના કારણે સત્તરમાં આ પદમાં લેશ્યાની પ્રરૂપણ કરવાને માટે છ ઉદ્દેશક કહે છે. સર્વ પ્રથમ પહેલા ઉદ્દેશકના અર્થોને સંગ્રહ કરનારી ગાથા કહેવાય છે
प्रल १