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प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् जाव सुक्कलेस्से पंचिंदियतिरिक्ख जोणिया कण्हलेस्सेसु जाव सुक्कलेस्सेसु पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ ? पुच्छा, हंता, गोयमा ! कल्ह. लेस्से जाव सुक्कलेस्से पंबिंदियतिरिक्खजोणिए कह लेस्सेसु जाव सुक्कलेस्सेसु पंचिंदियतिरिक्खजोगिएसु उबवज्जइ सिय कण्हलेस्से उबवट्टइ जाव सिय सुकलेस्से उववट्टइ सिय जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उवव
दृइ, एवं मणूसे वि, वाणमंतरा जहा असुरकुमारा जोइलिय वेमाणिया वि. __एवं चेत्र, नवरं जस्स जल्लेस्सा दोण्ह वि चयणंति भाणियव्वं ॥सू० १२॥'
' छाया-नैरयिकः खलु भदन्त ! नैरयिकेषु उपपद्यते, अनैरयिको नैरयिकेपु उपपद्यते ? गौतम ! नैरयिको नैरयिकेषु उपपद्यते, नो अनैरयिको नैरयिके षु उपपधते, एवं यावद वैमानिकानाम, नैरयिकः खलु भदन्त ! नायिकेभ्य उदवर्तते ? अनैरयिको नैरयिकेभ्य उद- ' तते ? गौतम ! अनैरयिको नैरयिकेभ्य उदवर्तते,नो नैरयिको नैरयिकेभ्य उदवर्तते, एवं
तृतीय उद्देशक शब्दार्थ-(नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववजइ) हे भगवन् ! नारक नारकों में उत्पन्न होता है ? (अनेरइए नेरइएसु उववज्जइ ?) या अनारक नारकों में उत्पन्न होता है ? (गोयमा ! नेरइए नेरइएसु उचबजइ, नो अनेरइए नेरहएसु उववनइ) हे गौतम ! नारक नारकों में उत्पन्न होता है, अनारक नारकों में उत्पन्न नहीं होता (एवं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार वैमानिकों तक।
(नेरइए णं भंते ! नेरइहिंतो उववइ, अनेरइए नेरइएहिंतो उववइ ?) हे भगवन् ! नारक नारकों से उद्वर्तन करता है या अनारक नारकों से उद्यतन करता है ? (गोयमा ! अनेरइए नेरइएहिंतो उववइ, णो नेरइए नेरइएहितो उववाह) हे गौतम ! अनारक नारकों से उद्धृत्त होता-निकलता है, नारक
। तृतीय देश शहाथ-(नेरइएणं भंते । नेरइएसु अमजद) 3 4 ! न.२४ नाम 4-1 थाय छे (अनेरइए और एसु उपयज्जह ?) ११२ ॥२५ न Hi G५. 1 थाय छ १ (गोयमा ! नेरइए नेरदएसु उपजइ, नो अनेरइ । नेइ उपज इ) गौतम ! ना२४ ना२i G५-1 थाय छ, अना२४ नामi Gurt नयी यता (एवं जाव वेमाणियाण) ये शत वैमानि। सुधी
(नेरइएणं भंते ! नेरइएहिं तो उववट्टइ, अनेरइए नेरइएहिंतो उबवट्टइ ?) स न् ! नार। ना२3tथी वतन ४२ छ २५१२ मना२४ नारथी हनन ४२ छ ? (गोयमा । अनेरइए नेरहएहिनो उबवट्टइ, णो नेरइए नेरइएहिंतो उबवट्टइ) गौतम ! मना२४ नारथी वृत थाय छे-नि४ छ, ना२४ नारथी वृत्त नथी थता (एवं जाव वेमाणिए) से प्रारे