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________________ प्रकापनायत्र यिकाः कृष्णलेश्याः, नीललेश्या असंख्येयगुणाः, कापोतलेश्या असंग येयगुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! तिर्यग्योनिकानां कृष्णलेश्यानां यावत् शुक्ललेश्यानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेपाधिका वा ? गौतम! सर्वरतो कास्तिर्यग्योनिकाः शुक्लळेश्याः, एवं यथा औधिकाः, नवरम्-अलेश्यवर्जाः, एतेपा मेकेन्द्रियाणां कृष्णलेश नां नीललेग्यानां लेश्याओं की अपेक्षा नारकादि का अल्प बटुत्व शब्दार्थ-(एएसि णं संते ! नेरझ्याणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य) भगवन् ! इन कृष्णलेश्या, नीललेल्या और कापोतलेल्या वाले नारकों में (कयरे कयरेहितो अप्पा चा, बत्या चा, तुल्ला वा विलेसाहिया वा ? ) कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा नेरइया ) गौतम ! सब से कम नारक (कण्हलेस्सा) कृष्णलेश्यावाले हैं (नील. लेस्सा असंखेजगुणा) नीललेश्या वाले असंख्यातगुणा हैं (काउलेस्सा असंखेजगुणा) कापोतलेश्या वाले असंख्यातगुणा हैं। (एएसि णं भले! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेरलाणं जाय सुकलेहसाणं य) भगवन् ! इन कृष्णलेश्यावाले यावत् शुक्ललेश्या वाले लियंग्योनिकों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेनाहिया वा) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेपाधिक है ? (गोयमा ! सम्बत्योचा निरिक्ख. जोणिया सुक्कलेस्सा) गौतम ! सब से कम शुक्ललेश्या बाले तिर्यंच हैं (एवं जहा ओहिया) इस प्रकार जैसा समुच्चयजीव (नवरं अलेस्सवजा) विशेष यह कि अलेश्यों को छोड कर। લેશ્યાઓની અપેક્ષા છે નારકાદિનું અ૫ બહુત્વ Avail:-एएसि णं भंते ! नेरइयाणं कण्हलेसाणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य) मनन् । An bोश्या, नीलेश्या, मन पोतदेश्यावाणा न.२.मा (कयरे कयरेहिंतो अप्पावा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया ?) यी १६५, , तुझ्य, या विशेष.५ छ ? (गोयमा । सव्वत्थोवा नेरइया) गौतम । यी सछ। ना२४ (कण्हलेस्सा) Yugोश्या (नीललेस्सा असंखेज्जगुण) नीलेश्यावा असभ्याता छ (काउलेस्सा असंखेनगुणा) पातवेश्यावा असभ्यात छे. __(एएसि णं भंते ! तिरिक्ख जोणियाणं कण्हलेसाणं जाव सुकलेस्साण य) 3 मापन | 241 वेश्यावा यारत् शु४५वेश्यावा तिय योनिमा (कयरे कयरेहिंतो) छोएर नाथी (अप्या वा, बहुया वा, तुल्ला वा विसेसाहिया वा) १६५, घी, तु४५ 24241 विशेषाधि छ ? (गोयमा! सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणिया सुकलेस्सा) गौतम | माथा माछा शुटवल पातिय छे. (एवं जहा ओहिया) 0 आर २१॥ सभुरव्यय (नवरं अलेस्सवज्जा) વિશેષ એ કે અલે સિવાય.
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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