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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरुपणम् ८, छायागतिः ९, छायानुपातगतिः १०, लेश्यागतिः ११, लेश्यानुपातगतिः,१२, उद्दिश्यप्रविभक्तगतिः १३, चतुष्पुरुषप्रविभक्तगतिः १४, वङ्कगतिः १५, पङ्कगतिः १६, बन्धनविमो — चनगतिः १७, तत् का सा स्पृशद्गतिः? स्पृशद्गति यत् खल्लु।परमाणुपुद्गलानां द्विप्रदेशिकानां यावद् अनन्तपदेशिकानां स्कन्धानामन्योन्यं स्पृशतां गतिः प्रवर्तते सा एपा स्पृशद्गतिः १, तत् का सा अस्पृशद्गतिः ? अस्पृशद्गति यत् खलु एतेपा श्चैव अस्पृशर्ता गतिः प्रवर्तते सा एपा अस्पृशद्गतिः २, तत् का सा उपसंपद्यमानगतिः ? उपसंपद्यमानगति यत् खलु राजानं वा हुई गति (अफुसमाणगती) स्पर्श न करती हुई गति (उवसंपजमाणगती) उपसंपद्यमानगति (अणुवसंपन्जमाणगती) अनुपसंपद्यमानगति (पोग्गलगती) पुद्गलगति (मंडूयगती) मंडूकगति (गावागती) नौकागति (नयगई) नयगति (छायागती) छायागति (छाया[वातगती) छायनुपातगती (लेस्तोगती) लेश्यागति (लेस्साणुवायगती) लेश्यानुपातगति (उद्दिसपविभत्तगती) उद्दिश्यप्रविभक्तेगति (चउपुरिसपविभत्तगती) चतुःपुरुषप्रविभक्तगति (वंकगती) वक्रगति (पंकगती) पंकगति (यंधणविमोयणगती) बन्धनविमोचनगति । ' । . . -: (से किं तं फुसमाणगती? २) स्पृशद्गति किसे कहते हैं ? (जं णं परमाणु पोग्गलाणं दुपएसियाणं जाव अणंतपएसियाणं) जो परमाणुपुद्गलों की, द्विप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी (खंधाणं), स्कंधों की (अण्णमण्णं फुसंताणं) आपस में स्पर्श करते हुओं की (गती) गति (पवत्तइ) होती है (से त्तं फुसमाणगती) वह स्पृशद्गति कहलाती है। , . . . . . . ..... ...(से किं तं अफुसमाणगती ? २) अस्पृशद्गति किसे कहते हैं ? (जं णं एएसिं चेव अफुसंताणं गती पवत्तती से तं अफुसमाणगती) जो स्पर्श न करते २५ ४२ती गति (अफुसमाणगती) २५श नही ४२नारी गति (उवसंपज्जमाणगती) ५५ धमानाति (अणुवसंपज्जमाणगती) मनु५५५-नगति (पोगलती) पुसति (मंडूयगती) भौति"(णावागती) नीति (नयगई) नयगति (छायागती) च्याती (छायाणुवातगती) छयानुपातयति' (लेस्सागती) सेश्यांगति (लेस्साणुवायंगती) वेश्यानुपातमति (उदिसपविभत्तगती) ६२५ प्रविमति (चउपुरिसपविभत्तंगती) यतु ५३५ 'प्रविसतिगति (वंकगती) पति(पंकगती) ५४गति (बंधणविमोयणगती) मधनं विभयनाति । " (से किं तं फुसमाणगती १) शगति न ४ छे (जणं परमाणु पोग्गलाण दुपयेसियाण जाव अणतपएसियाण)'२ परंभा पुशवानी '६५देशी यात् मनन्त प्रदेशी (खंधाण) ४धानी (अण्णमण्णं फुसताणं) आपसमा २५श ४२नारायानी (गती) ति (पवत्तइ) खाय छ (सेत्तं 'फुसमीणर्गती)) ते स्पृशई गति छ ' (सेकिन माणगती 1) 'मस्पृशई गति अने'४' ? (जं णं एएसिं चेव अफुतं ताणं गती पवत्तती सेत्तं अफुसमाणगती) २ पश'''४२ता २सा से १ ५२मा माहिना
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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