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प्रमेययोधिनी टीका पद १५ सू० ११ भावेन्द्रियस्वरूपनिरूपणम्
७५ दण्डको भणितस्तथा भावेन्द्रियेष्यपि पृथक्त्वेन दण्डको भणितव्यः, नवरं वनस्पतिकायिकानी वद्धानि अनन्तानि, एकैकस्य खलु भदन्त ! नैरयिकस्य नैरयिकत्वे कियन्ति मावेन्द्रियाणि अतीतानि ? गौतम ! अनन्तानि, बद्धानि? पञ्च, पुरस्कृतानि कस्यापि सन्ति कस्यपि न सन्ति, यस्य सन्ति, पञ्च वा दश वा, पञ्चदश वा, संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, एवम् असुरसाराणां यावत् स्तनितकुमाराणास्, नवरं वद्धानि न सन्ति, पृथिवीकायिकत्वे यावद् द्वीन्द्रित्वे यथा द्रव्येन्द्रियाणि, त्रीन्द्रियत्वे तथैव, नवरं पुरस्कृतानि त्रीणि वा, पडू क्त्व-बहुवचन से (दंडओ भणिओ) दंडक कहा है (तहा) इसी प्रकार (भाविदि. एसु वि) भावेन्द्रियों में भी (पोहतेण दंडओ माणियन्वो) बहुवचन से दंडक कहना चाहिए (नवरं) विशेष (वणस्तइकाइयाणं वर्तल्लगा अर्णता) वनस्पतिकायिकों की बद्ध अनन्त हैं। • - (एगमेगस गं भंते ! नेरइयस्त) हे भगवन् ! एक-एक नारक की (नेरइत्ते) नारकाने में (केवइया भाविदिया अतीता) कितनी भावेन्द्रियां अतीत हैं.? (गोयमा! अर्णता) हे गौतम ! अनन्त (बद्वेल्लगा ?) बद्ध ? (पंच) पांच (पुरेक्खडा कस्सवि अस्थि, कस्लवि नस्थि) पुरस्कृत किसी की हैं, किसी को नहीं (जस्स आत्थि पंच वा, दस वा, पण्णरस संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा) जिसकी है, उसकी पांच, दश, पंन्द्रह, संख्यात असंख्यात अथवा अनन्त हैं (एवं असुर: कुमाराणं जाव थणियकुमाराणं) इसी प्रकार असुरकुमारों की यावत् स्तनितकु मारों की (नवरं बद्धेल्लगा नत्थि) विशेष-बद्ध नहीं हैं (पुढविकाइयत्त जाव वेइंदियत्ते जहा दधिदिया) पृथ्वीकायिकपने यावत् हीन्द्रियपने में जैसे द्रव्येन्द्रियां कही है (तेइंदियत्ते तहेब) त्रीन्द्रियपने इसी प्रकार (नवरं) विशेष (पुरेक्खडा) भावी
मे ४२ रेभ (दञ्चिदिएसु) द्रव्येन्द्रियामा (पोहत्तेणं) पृथ४१-महुवयनथी (दंडओ भणियओ) ४४ ४ा छ (तहा) मे रे (भोविदिएस) लावन्द्रियोमा ५८, (पोहतेणं दंडओ भाणियत्रो) महुवयनथी ४४ ४ा नये. (नवरं) विशेष (वणस्सइकाइयाणं ' बद्धलंगी अणंता) वनस्पति यिनी मद्ध मनन्त छ
(एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स) 8 भगवन् । ४' ना२४जी (नेरइयत्ते) ना२४५५मा (वेवईया भावि दिया अतीता) ही मान्द्रियो मतीत छ ? (गोयमा ! अणता) गौतम ! मनन्त (बंल्लिंगा) मई (पंच) पांय (पुरेक्खडा कस्स वि अत्थि, कस्स वि नत्थि) पुरस्कृत धनी छ. नी नथी (जस्स अस्थि, पंच वा दस वा पण्णरस वा संखेज्जा वा; 'असंखेज्जा वा, अगंता वां) नी छे तनी पांय, ४श, ५४२, सभ्यात, असयाd, A24। अनन्त छ (एवं जाव असुरकुमाराणं जीव थणियकुमाराणं) से प्रारे असुमारानी तेभर स्तनित भानी (नवरं बल्लिगा नत्यि) विशेष-मद्ध नयी (पुढविकाइयत्ते जाव वेइंदियत्ते जही दघि दिए) कीयिपणे यावत् दीन्द्रिय परीकी द्रव्येन्द्रियो (तेइंदियत्ते तहेव) त्रीन्द्रिय