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________________ ६८८ . . . प्रज्ञापना ओगला विलेसाहिया, जिभिदियाल उक्कोसिया उक्ओगद्धा विसेसा. हिया फासिंदियस्त उकोसिया उबोगद्धा विसेसाहिया५ । कइविहाणं भंते ! इंदिय ओगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! पंचविहा इंदिय ओगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदिय ओगाहणा, जाव शासिदिय ओगाहणा, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, जस्त जइ इंदिया अस्थि६॥सू०८॥ . छाया-कति विधः खलु भदन्त ! इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! पञ्चविध-इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियोपचयः, चक्षुरिन्द्रियोपच्या, नाणेन्द्रियोपचयः, जिवेन्द्रियोपचयः, स्पर्शनेन्द्रियोपचयः, नैरयिकाणां भदन्त ! कतिविध इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! पञ्चविधः इन्द्रियोपचयः प्रज्ञन्तः, तद्यथा-श्रोनेन्द्रियोपचयः, यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपवयः, एवं यावद् वैमानिकानाम्, यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि तस्य तावद्विधश्चैव इन्द्रियो इन्द्रियोपचय आदि की प्ररूपणा - शब्दार्थ-(कविहे.णं संते ! इंदियउवचए पण्णते ?) हे भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे इंदियउवचए पण्णत्ते?) हे गौतम ! पांच प्रकार का इन्द्रियोपचय कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (सोईदिए उवचए) श्रोत्रेन्द्रिय उपचय (चक्खिदिए उवचए) चक्षुरिन्द्रिय उपचय (घाणिदिए उवचए) घ्राणेन्द्रिय उपचय (जिभिदिए उघचए) जिहवेन्द्रिय उपचय (फासिदिए उवचए) स्पर्शनेन्द्रिय उपचय (नेरइयाणं भंते ! काविहे इंदिओघचए पण्णत्ते?) हे भगवन् ! नारकों का कितने प्रकार का इन्द्रियोपचय कहा गया है ? (गोयमा ! पंचविहे इंदियोवचए पण्णन्ते ?) हे गौतम ? पांच प्रकार का इन्द्रियोपचय कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (लोइंदिओवचए जाव फासिदि. ओवचए) ओन्द्रियोपचय यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपचय (एवं जाव वेमाणियाण) ઈન્દ્રિપચય આદિની પ્રરૂપણા शहाथ-(कइविहेणं भंते ! इंदिय उवचए पण्णत्ते १) 8 सावन्! छन्द्रिय उपयय ४८दा २ ह्या छ ? (गोयमा । पंचविहे इंदियउवचए पण्णत्ते १) गीतम! पाय ARE धन्द्रियो५यय ४॥ छ (तं जहा) ते ॥ ४॥२ (सोइंदिएउवचए) त्रिन्द्रिय उपयय (चक्विं. दिए उवचए) यक्षुरिन्द्रिय 642 (घाणिदिए उवचए) धान्द्रिय ९५यय (जिभिदिए उबवए) निन्द्रय 6५यय (फासि दिए उवचए) २५न्द्रिय उपाय ., (नरइयाणं भंते ! कइविहे इंदिओवचए पण्णत्ते १) भगवन् ! नाना 321 रन न्द्रिय यय ४९सा छ १ (गोयमा । पंचविहे इंदियोवचए पण्णत्त) 3 गौतम ! पाय ५२ना धन्द्रियो५५५ ४ा छे (तं जहा) ते मा प्रारे (सोइंदिए उवचए जाव फासिदिओवचए) भावन्द्रिया५यय यावत् २५शनन्द्रियो५यय (एवं नाव वैमाणियाणं) शते वैभानि। सुधी
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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