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प्रमैययोधिनी टीका पद १५ सू. ८ अतीन्द्रियविशेषविषयनिरूपणम् पृथिवी कायिकेन स्पृष्टः, यावद् वनस्पतिकायिकेन स्पृष्टः, त्रसकायिकेन स्पृष्टः, स्यात् नो • स्पृष्टः, अद्धासमयेन स्पृष्टः, एवं लवणसमुद्रः, धातकीनण्डो द्वीपः, कालोदः समुद्रः,
अभ्यन्तरपुष्कगर्द्धः, बहिः पुष्करार्द्धः एवञ्चैव, नवरम् अद्धासमयेन नो स्पृष्टः, एवं यावत् स्वयम्भूरमण समुद्रः, एपा परिपाटी आमिर्गाथाभिरनुगन्तव्या, तद्यथा-जम्बूद्वीपो, लवणो, धातकी, कालोदः पुष्करी वरुणः । क्षीरवृतानन्दी चारुणवरः कुण्डलो रुचकः ॥१॥ आभरणवस्त्रगन्धः उत्पलतिलकश्च पानिधिरत्नानि । वर्षधरहूदनधो विजयाः वक्षस्कारकल्पेन्द्राः
आगासस्थिकायस्स वि) आकाशास्तिकाय के भी (पुढविकाइएणं फुडे) पृथिवीकाय से स्पृष्ट है (जाव वणरूलाहकाएक फुडे) यावत् वनस्पतिकाय से स्पृष्ट है (तसकाइएणं सिय फुडे लिय णो फुडे) बसवाय से कदाचित् स्पृष्ट है, कथंचित् स्पृष्ट नहीं है (अद्धासमएणं फुडे) अद्धासमय से स्पृष्ट है (एवं) इसी प्रकार (लवणलालुद्दे) लवणसमुद्र (धायतिसंडे) धातकी खंड (दीवे) द्वीप (कालोए समुद्दे) कालोद समुद्र (अम्भितरपुक्खरद्धे) भीतरी पुष्करार्ध (वाहिरपुश्खरद्धे) बाह्य पुष्करार्ध (एवं चेव) इसी प्रकार (णवरं) विशेष (अद्धासमएणं नो फुडे) अद्धा समय से स्पृष्ट नहीं (एवं जाव सयंभूरमणलसुद्दे) इस प्रकार स्वयंभूरमण समुद्र तक (एसा परिवाडी) यह परिपाटी (इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वा) इन गाथाओं से जाननी चाहिए (तं जहा) वह इस प्रकार (जंवहीवे) जम्बूद्वीप (लवणे) लवणसमुद्र (धायह) धानकीखंड (कालोय) कालोद (पुक्खरे) पुष्कर द्वीप (वरुणो) वरूण द्वीप (खीर-घय-खोय-दिय-अरुणवरे कुंडले रुयते) क्षीरवर, धृतवर, क्षोय-इश्शु, नन्दीश्वर, अरुणवर, कुंडलवर, रुचक (आभरण-वत्थ-गंधे) आभरण, वस्त्र, गंध (उप्पलतिलए) उत्पल, तिलक (पउमनिहिरयणे) पद्म, निधि, रत्न (वासहर-दह-नईओ) वर्षधर, हृद, नदियां सत्यिकायस्स वि) भाशायना ५Y (पुढविकाइएणं फुडे) पृथ्वीयस्थी पृष्ट छ (जाव घणस्सइकारणं फुडे) यावत् पनपतिथी २Yष्ट (तसकाइएणं सिय फुडे सिय णो फुडे) से
यथा हाथित् स्पृष्ट थाय छे ४ायत् यता नथी (अद्धा समएणं फुडे) मद्धा समयथा पर छ (एवं) मे मारे (लवणसमुहे) सव! समुद्र (अभिंतरपुक्खरद्धे) 24 रन पराध (बाहिरपुक्खरद्धे) मा पुष्४राध' (एवं चेव) मे ॥२ (नवरं) विशेष (अद्धासमएणं नो फटे) मद्धासभय५ ष्ट नयी (एवं जाव सयंभूरमणसमुदे) से मारे स्वयंभूरभए समुद्र सपा (एसा परिवाडी) मा ५२पाटी (इमााह गाहाहि अणुगंतव्या) गाथामेथी की मध्ये (तं जहा) ते ॥ प्रारे (जंबुद्दीवे) दी५ (लवणे) Aqसमुद्र (धायई) धातsी ' (कालोय) लाई (पुक्खरे) पु०४२ वी५ (वरुणो) १३ दीप (खीर-घय-खोयणंदिय-अरुणवरे कुंडले रुयते)ी२१२, धनव२, २४ क्षु नन्दीश्वर, ५३शु१२ ११२ ३०४ (आभरण-वत्थ-गंधे) मास२९ पत्र ५ (उप्पलतिलए) Grue ldk (पउमनिहि रयणे) यम, निधि, २न (पास