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________________ ......... प्रापनास्त्र घातेन समवहतस्य ये चरमा निर्जरापुद्गलाः सूक्ष्माः खलु ते पुद्गलाः प्रज्ञप्ताः श्रमणायुष्मन् ! सर्व लोकमपि च खलु अवगाह्य खलु तिष्ठन्ति, छद्मस्थः खलु भदन्त ! मनुष्यस्तेषां निर्जरापुद्गलानां किम् अन्यत्वं वा, नानात्वं वा, अवमत्वं वा, तुच्छत्वं वा, गुरुत्वं वा, लघुत्वं वा, जानाति, पश्यति ? गौतम ! नायमर्थः समथः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते छद्मस्थः खल्लु मनुष्यस्तेषां निर्जरापुद्गलानां नो किञ्चिदन्यत्वं वा, नानात्वं वा, अवमत्वं वा, तुच्छत्वं वा, गुरुत्वं लघुत्वं वा, जानाति, पश्यति ? देवोऽपि च खलु अस्त्येको यः खलु तेषां अनगार के (जे चरमा निज्जरा पोग्गला) जो अन्तिम निर्जरा-पुद्गल है (सुहमाणं ते पोग्गला पण्णत्ता) वे पुद्गल सूक्ष्म कहे हैं (समणाउसो) आयुष्मन् श्रमणो ! (सव्वं लोगं पि य णं ओगाहित्ताणं) सब लोक को अवगाहन करके (चिट्ठति) रहते हैं (छउमत्थे णं भंते ! भणूसे) हे भगवन् ! छमस्थ मनुष्य (तेसिं णिज्जरापोग्गलाणं) उन निर्जरा पुद्गलों के (किं) क्या (आणत्तं) अन्यत्व (नाणत्तं) नानात्व (ओमतं) हीनता (तुच्छत्तं वा) 'अथवा तुच्छ (गरुयत्तं वा) या गुरुता, (लहुयत्तं वा) या . लघुता (जाणइ पासह) जानता, देखता है ? (गोयमा णो इणढे समटे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं। - (से केणटेणं भंते ! एवं पुच्चइ) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि (छउमस्थे णं मणूसे) छद्मस्थ मनुष्य (तेसि णिज्जरापोग्गलाणं) उन निर्जरा पुद्गलों को (णो) नहीं (किंचि) कुछ भी (आणत्तं वा) अन्यत्व को (णाणत्तं वा) नानात्व को (ओमत्तं वा) हीनत्व को (तुच्छत्तं वा) तुच्छत्व को (गरुयत्तं वा) गुरुत्व को (लायत्तं वा) अथवा लघुत्व को (जाणइ पासइ) जानता, देखता है ? (देवे वि य णं अत्थेगइए) कोई-कोई देव भी (जे णं) जिस कारण घरमा निज्जरा, पोग्गला) २ मन्तिम नि । पुस छ (सुहमाणं ते पोग्गला पण्णत्ता).. 'YEगा सूक्ष्म ४ छ (समणाउसो) भायुष्मन् 'श्रभो। । (सव्यं लोग पि य णं ओगाहित्ताण) मधा attी' मानाशन (चिदंति) २'छ E (छउमत्येणं भवे ! मणूसे) मान्! भस्थ मनुष्य (सिं णिज्जरोपोगलाण) ते नि। पुदमवाना (किं) शु (आणत्त) सन्याय (नाणत्तं) ननाव (श्रीमत्तं) हीनता (तुच्छ तं वा) अयातु-छता (गरुयत्तं वा) अगर शु३त॥ (लहुयत्तं वा) मगर सधुता (जाणइ पासइ) तए थे, लेवे छ १ (गोयमा! णो इणद्वे समद्वे) गौतम,! ! म समर्थ नथी । (से फेणद्वेणं भंते, एवं वुच्चई) 8 लगवन् ! शा हेतुथी मे पाय छ (छउमत्थे ण मणूसे) छमस्थ मनुष्य (तेसिं णिज्जरा पोग्गलाण) त नि दाना (नो), नहीं (किंचि) is पy (आणत्तं वा) भन्यवन (णाणत्तं वा) नानापन (अमत्तं वा) हीनापन (हुच्छत्तं वा) तुश्रवने (गरुयत्तं वा) ३१ने (लहुयत्तं वा) अथवा सधुत्पन (जाणइ पासई) तो छ हमे छ ? (देवे वि य णं अत्येगइए) ४ ६ ३१ ५ (जे ण) २ २४थी (तेसिं
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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