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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १५ खू० ३ नैरयिकादीन्द्रियनिरूपणंम् ત गुणा अनन्तगुणाः, जिवेन्द्रियस्य मृदुकलघुकगुणा अनन्तगुणाः, एवं चतुरिन्द्रियाणामिति, नवरम् इन्द्रियपरिवृद्धिः कर्तव्या, त्रीन्द्रियाणां घ्राणेन्द्रियं स्तोकम्, चतुरिन्द्रियाणां चक्षुरिन्द्रियं स्वोकम्, शेषं तच्चै, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां मनुष्याणाञ्च यथा नैरचिकाणाम्, नवरम् - स्प र्शनेन्द्रियं पविघसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा - समचतुरस्रम्, न्यग्रोधपरिमण्डलम्, सादिकुजं वामनं हुण्डस्, वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकानां यथाऽसुरकुमाराणाम् ॥ ०३॥ ( फा सिंदियस्स कवडगरुयगुणा अनंतगुणा ) स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कशगुरुगुण अनन्तगुणे हैं (फासिंदियस्स कक्खडगरूपगुणेहिंतो ) स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश - गुरु गुणों से (तस्स चैव मउयलहुयगुणा) उसी के मृदु लघु गुण (अनंतगुणा ) अनन्तगुणा हैं (जिविंभदियस्स मउयलहुयगुगा) जिवेन्द्रिय के मृदु-लघु गुण (अनंतगुणा) अनन्तगुणे हैं ( एवं जाव चउरिदियत्ति ) इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय (नवरं इंदियपरिवुड्ढी कायन्वा ) विशेष यह कि इन्द्रियों की वृद्धि करनी चाहिए (इंदियाणं धार्णिदिए धोवे) त्रीन्द्रियों की घ्राणेन्द्रिय स्तोक (चडरिंदिएयाणं चक्खिदिए थोवे) चौइन्द्रियों की चक्षुइन्द्रिय स्तोक (सेसं तं चेव) शेषं वही पूर्ववत् । (पंचिदियतिरिक्ख जोणियाणं मणूसाण य जहा नेरइयाणं ) पंचेन्द्रिय तिर्यचों और मनुष्यों की वक्तव्यता नारकों के समान (नवरं ) विशेष ( फार्सिदिए) स्पर्शनेन्द्रिय (छन्हिठाणसंठिए) छह प्रकार के संस्थानवाली (पण्णत्ते) कहीं - समचौरस) (निगोहपरिमं( तं जहा ) वह इस प्रकार (समचरं से) समचतुरस्र-: डले) न्यग्रोधपरिमंडल (सादी) सादी (खुज्जे) कुब्ज (वामणे) वामन (हुंडे) हुण्डक अणंतगुणा) स्पर्शनेन्द्रियना ४४र्श गुगुयु अनंत ( फासि दियस्स कक्खडगस्यु - गुणेहि तो) स्पर्शनन्द्रियना ४४ गुड़ गुथेोथी ( तस्स चेव मउयलहुयगुणा ) तेना भृहु-: लघु गुधु (अगंतगुणा) अनन्तगा (जिब्भिंदियस्स मउयल हुयगुणा) निवेन्द्रियनाभृट्टु सधुं गुथु (अणंतगुणा ) अनंतगया है ( एवं नाव चउरि दियत्ति ) मे अठारे यावत् यतुरिंद्रिय (नवर ) विशेष (इंदियपरिवुड्डी कावा ) मे छेन्द्रियोनी वृद्धि वा लेश्वय्ये (तेइंदियाणं घाणिंदिए थावे) त्रीन्द्रियानी ब्रोन्द्रिय स्वय छे. (चउरिदियाणं चक्खिदिए थोत्रे) यतुरिन्द्रियोनी यक्षुरिन्द्रिय स्नो - स्वस्थ छे. (सेस तं चेत्र) विशेष ते पूर्व प्रभाये छे. (पंचि ंदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा नेरइयाणं) पथेन्द्रिय तिर्यथा भने भनुष्योनी वक्तव्यता नारहीना समान (नवर ) विशेष ( फासि दिए) स्पर्शनेन्द्रिय (छबिह संठोणसंठिए) छ प्रारना सस्थानवाणी (पण्णत्ते ) ४ही छे (तं जहा ते छ अहार मा अठारे (समचउरसे) सभयतुरञ्ज-सभयेारस (निगोह परिमंडले) न्यग्रोध परिभउस (सादी), साठी (खुज्जे) ५४ (वामणे) वामन (हुडे) हुउ
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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