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प्रमेयोधिनी टीका पद १५ २० २ इन्द्रियाणामबगाननिरूपणम् गुणम्, श्रोत्रेन्द्रियस्य खलु भवन्त ! कियन्तः कर्कश गुरुकगुणाः प्रज्ञता ? गौतम ! अनन्ता कर्कशगुरुकगुणाः प्रज्ञप्ताः, एवं यावत् स्पर्शनेन्द्रियस्य, श्रोनेन्द्रियस्य खलु भदन्त ! कियन्ती, पदुकलघुगुणाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ता मृदुकलघुगुणाः प्रज्ञप्ताः, एवं यावत् स्पर्शनेन्द्रि स्य, एतेषां खलु सदन्त ! श्र नेन्द्रियचक्षुरिन्द्रियघाणेन्द्रियजिवेन्द्रियस्पर्शनेन्द्रियाणां कर्कशगुरुसगुणानां मृदुकलघुकगुणानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, वहुका था, तुल्या वा, विशेषाधिका पा ? गौतम ! सर्वस्तोकाश्चक्षुरिन्द्रयस्य कर्कशगुरुकगुणाः, श्रोत्रेन्द्रियस्य कर्कश
(सोहंदियात ण मते ! केवड्या करखडगुरुवगुणा एण्णता ?) भगवन् ! श्रोत्रे न्द्रिय के फर्कश-गुरुक गुण कितने कहे गए हैं ? (गोयना ! अणंता कक्खडगुरुयगुणा पण्णता) हे गौतम ! अन्नन्न कर्कश-गुरुकगुण कहे गए हैं (एवं जाव फासिदिधस्स) इसी प्रकार यावत् स्पशेन्द्रिय के (लोइंदियस्सणं भंते ! वेवइया मउयल हुयगुणा एण्णत्ता?) हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण कितने कहे हैं? (गोयमा! अर्णता पाउयलहयगुणा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त मृद-लघुगुण कहे गए हैं (एवं जाच फारिदिधस्स) इसी प्रकार स्पर्शेन्द्रिय का समझ लेवें।
(एएलिज भते! सोइंदियचविखदिय धाणिदिय जिभिदिय फासिंदियाणं कक्खडगुख्यगुणाणं मउयलहुयगुणाण य कयरे कचरे हितो) हे भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घाणेन्द्रिय, जिइवेन्द्रिय और स्पशेन्द्रिय के कर्कश-गुरु गुणों और मृद लघु गुणों में कौन किससे (अप्पा बा, वहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? _ (गोयमा ! सव्वत्थोवा चविखदियस्स कक्खडगुरुयगुणा) हे गौतम ! सब से कम चक्षहन्द्रिय के कर्कशगुरु गुण हैं (सोइंदियस्त कक्खडगुरुयगुणा अणंत
(सोइंदियस्स णं भंते ! केवइया कक्खड गुरुयगुणा पण्णत्ता ?) भगवन् ! त्रिन्द्रियना श-४३४ गुण हैट वादा छ ? (गोयगा ! अणंता कक्खडगुरुयगुणा पण्णत्ता) गौतम । अनन्त ४४ शु३४शु ४३सा छ (एवं जाव फासि दियस्स) मे घारे यावत्
शेन्द्रियना (सोइंदियस्स णं भंते। केवइया मउयलहुयगुणा पण्णत्ता) 3 भगवन् ! श्रात्रेन्द्रियना भू-धु गुर मा ४ा छ ? (गोयमा । अणंता मउयलहुयगुणा पणत्ता) गौतम। मनन्त भू-संधु गु सा छे (एवं जाव फासिदियस्स) की सरे स्पन्द्रियाना सभा
(एएसिणं भंते । सोइंदियचक्खिदियघाणि दियर्जिभिदियफासि दियाणं यक्वसगस्यगणाणं मउचलहुयगुणाण य कररे कयरेहिं तो) भगवन् ! मा श्रीन्द्रिय, यक्षुरिन्द्रिय, प्रारीन्द्रयः જિહુવેન્દ્રિય અને સ્પર્શેન્દ્રિના કર્કશ ગુરૂ ગુણ અને મૃદુ-લઘુગુણેમાં કેણ કેનાથી (અgr वा वहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा?) ६५, घी, तुथ्य अथवा विशेषाधि छ ?
(गोयमा! सव्वत्योवा चक्विंदियस्स काखडगुरुयगुणा) 3 गोतम ! माथी सीको ०१५