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________________ ५७८ प्रतापनारसे पञ्चदशं पदम् खूलम्-संठाणे बाहल्लं पोहतं कइपएसओगाढे । अप्पा बहुपुटुपविट्ट विलय अणगार आहारे ॥१॥ अदा य असी य मणीनुद्धपाणे तेल्ल फाणिय वसाय । कंवलथूणा थिग्गल दीवोदही लोगऽलोगे य ॥२॥ ____ छाया-संस्थान, वाहल्यं, पृथुत्वं, कतिप्रदेशम्, अवगाढम् । अल्पबहुत्त्वं स्पृष्टम्, प्रविष्टम्, विषयः, अनगारः, आहारः ॥१॥ आदर्शः, असिश्च मणिर्दुग्धम्, पानकम्, तैलम्, फाणितम् क्सा च । कम्बलम् स्थूणा, विग्गलम्, द्वीपोदधि, लोकः अलोकञ्च ॥२॥ __टीका-चतुर्दशपदे कपायपरिणामस्व प्राधान्येन बन्धकारणवाद् विशेषतस्तनिरूपणं कृतम् अथ इन्द्रियवतामेव लेग्यादि सद्भावेन विशेषत इन्द्रियपरिणामप्ररूपणार्थ पञ्चदशं पदं व्याख्यातुमाह-अत्र च उद्देशक द्वयमस्ति, तत्र प्रथमोदेशकार्यसंग्रहगाधा द्वयमाह-'संठाणं पन्द्रहवां पद शब्दार्थ-(संठाणे) संस्थान (वाहल्लं) स्थूलता (पोहत्तं) पृथक्त्व (कइपएस) कतिप्रदेश-इन्द्रियों के प्रदेश कितने ? (ओगाढे) अवगाढ (अप्पापहु) अल्पबहुत्व (पुष्ट) स्पृष्ट (पविठ्ठ) प्रविष्ट (विलय) विषय (अणगार) अनगार (आहारे) आहार (अहाय) दर्पण (अली य) और तलवार (मणी) मणि (बुद्ध ) दूध (पाणे) पानक (तेल्ल) तैल (फाणिय) शव (वसाय) और चर्बी (कंबल) कंबल (श्रृणा) थून (धिग्गल) थेगली (दीवोदहि) द्वीप,, समुद्र (लोगाऽलोगे य) लोक और अलोक टीकार्य-कपाय बन्धन का प्रधान कारण है, अतः चौदहवें पद में उसका विशेष रूप से निरूपण किया गया है, परन्तु इन्द्रियों वाले जीवों में ही लेश्या आदि का सद्भाव होता है, अतः विशेष रूप से इन्द्रिय परिणाम की प्ररूपणा करने के लिए पन्द्रहवें पद की व्याख्या की जाती है। इस पद में दो उद्देशक પંદરમું પદ शनार्थ-(संठाणे) संस्थान (बाहल्लं) स्थ्ण ता (पाहत्त) पृथ४.५ (कइपएस) तिप्रदेश धन्द्रियाना प्रटेश टा ? (ओगाढे) भगा (अप्पा बहु) म६५ मय (पुट्ठ) र (पविट्ठ) प्रविष्ट (विसय) विषय (अणगार) अनार (आहारे) माहार (अदाय) ६ (असीय) aaपार (मणी) भyि (दुद्ध) द्ध (पाणे) पान (तेल्ल) तेस (फाणिय) शम (वसाय) भने यी (कंवल) ४in (थूणा) थून (थिग्गल) थीमी (दीबोदहि) दीप, समुद्र (लोगाऽलोगे य) લેક અને અલેક ટીકા-પાય બન્ધનું પ્રધાન કારણ છે. તેથી ચૌદમા પદમાં તેનું વિશેષ રૂપે નિરૂપણ કરાયું છે, પરંતુ ઈન્દ્રિયે વાળા માં જ વેશ્યા વિગેરેનો સદ્ભાવ હોય છે, તેથી વિશેષ રૂપથી ઈન્દ્રિય પરિણામની પ્રરૂપણ કરવાને માટે પંદરમા પદની વ્યાખ્યા કરાય છે
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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