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________________ राम वहा प्रज्ञापनासूत्रे द्वीन्द्रियाः गतिपरिणामेन तिर्यग् गतिकाः, इन्द्रियपरिणामेन द्वीन्द्रियाः, शेपं यथा नैरयिकाणाम्, नवरं योगपरिणामेन वचो योगिनः, काययोगिनः, ज्ञानपरिणामेन आभिनिवोधिकज्ञानिनोऽपि, श्रुतज्ञानिनोऽपि, अज्ञानपरिणामेन मत्यज्ञानिनोऽपि, श्रुताज्ञानिनोऽपि, नो विभङ्गज्ञानिनः, दर्शनपरिणामेन सभ्यग्दृष्टयोऽपि, गिथ्यादृष्टयोऽपि, नो सम्यमिथ्यादृष्टयः, शेपं तच्चैव, एवं यावच्चतुरिन्द्रियाः नवरम् इन्द्रियपरिवृद्धिः कर्तव्या, पञ्चेन्द्रियतिपरिणाम से मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी होते हैं (दसणपरिणामेण मिच्छट्टिी) दर्शन परिणाम से मिथ्यादृष्टि (सेसं तं चेव) शेष वही (आउवणप्फइ काइया वि) अप्कायिक और वनस्पति कायिक भी (तेऊ वाऊ) तेजः कायिक और वायुकायिक (एवं चेय) इसी प्रकार (वरं) विशेष (लेस्सापरिणामेणं जहा नेरइया) लेश्या परिणाम से नारकों के समान (वेदिया गति परिणामेणं तिरिय गतिया) द्वीन्द्रिय गतिपरिणाम से तिर्य च गति वाले (इंदियपरिणागं वेइंदिया) इन्द्रिय परिणाम से हीन्द्रिय (सेसं जहा नेरइयाणं) शेष नारकों के समान (णवरं) विशेष (जोगपरिणामेणं वयजोगी, कायजोगी) योग परिणाम से वचन योगी, काययोगी (णाणपरिणामेणं आभिणियोहियनाणी वि, सुयणाणी वि) ज्ञान परिणाम से आभिनियोधिक ज्ञानी भी, श्रुतज्ञानी भी (अण्णाणपरिणामेणं मइ अण्णाणी वि, सुअ अण्णाणी वि) अज्ञान परिणाम से मत्यज्ञानी भी, अताज्ञानी भी (नो विभंगणाणी) विभंगज्ञानी नहीं होते (दंसणपरिणामेणं) दर्शनपरिणाम से (सम्मदिठी विमिच्छदिद्विवि सम्यग्दृष्टि भी, मिथ्या दृष्टि भी (नो सम्मामिच्छादिट्ठी) सम्पमिथ्या दृष्टि परिणामयी मत्यज्ञानी भने श्रुताजानी डाय छे (दसणारिणामेगं मिच्छट्टिी) शन ५२ एमया मिथ्याल्टि (सेसं तं चेव) शेष ते (आउवण'फई काइया वि) २मयि४ मने वनस्पतियि४ ५४( तेउबाऊ) त य गने वायुय: (एवं चेव) मे ५४ारे (णवरं) विशेष (लेस्सा परिणामेणं जहा नेरइया) લેશ્યા પરિણામથી નારકના સમાન (वेइंदिया गतिपरिणामेणं तिरियगतिया) द्वीन्द्रिय गति परिणामथी तियय गति वाणा (इंदियपरिणामेणं वेइंदिया) छन्द्रय परिणामथी द्वन्द्रय (सेसं जहा नेरइयाण) शेष ना२४ना समान (णवरं) विशेष (जोगपरिणामेणं वयजोगी, कायजोगी) यो परिशामयी नयन योगी, ४ाययोगी (गाणपरिणामेणं आभिणीयोहियणाणी वि, सुयणाणी वि) जान परिणामयी मालिनिधि नानी ५, श्रुशानी पर (अण्णाणपरिणामेणं मइ अण्णाणी वि, सुय अण्णाणी वि) ज्ञान परिणामथी मत्यज्ञानी ५५], श्रुताज्ञानी ५y (नो विभागं णागी) विज्ञानी नथी उता (दसणपरिणामेणं) शन परिणामयी (सम्मदि वि वि मिच्छादिट्ठि वि) सभ्य पशु, मिथ्याटि ५y (नो सम्मामिच्छा दिट्ठो) सभ्य
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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