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________________ प्रमेयवोधिनी टीको पद ८ सू १ संनापदनिरूपणम् युक्ताः, संततिभावं प्रतीत्य आहारसंज्ञोपयुक्ता अपि, यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्ता अपि, एतेषां खल भदन्त ! नैरयिकाणाम् आहारसंज्ञोपयुक्तानाम् भयसंज्ञोपयुक्तानाम् मैथुनसंज्ञोपयुतानाम् परिग्रहसंज्ञोपयुक्तानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा तुल्या वा, विशेपाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः नैरयिकाः मैथुनसंज्ञोपयुक्ताः, आहारसंज्ञोपयुक्ताः संख्येयगुणाः, परिग्रहसंज्ञोपयुक्ताः संख्येयगुणाः, भयसंज्ञोपयुक्ताः, संख्येयगुणाः, तियं(परिग्गहसन्नोवउत्ता?) परिग्रहसंज्ञा में उपयुक्त होते हैं ? (गोयना !) हे गौतम ! (ओसन्नं कारणं पडच्च) प्राय बाय कारण को अपेक्षा ले (अयसन्नोवउत्ता) भयसंज्ञा के उपयोग पाले हैं (संतइभावं पडुच्च) आन्तरिक अनुभव की अपेक्षा से (आहारसन्नोवउत्ता वि जाव परिरगहसन्नोवउत्ता वि) आहार संज्ञा में भी यावतू परिग्रह संज्ञामें भी उपयुक्त होते हैं । (एएसि गं भंते ! रहयाणं आहार सन्नोवउत्ताणं, भयसन्नोवउत्ताणं, मेहुणसन्नोवउत्साणं, परिग्गहसन्नोवउत्ताण य) हे भगवन ! इन आहारसंज्ञा में उपयक्त, परिग्रहसंज्ञा में उपयुक्त नारकों में (कयरे कयरोहितो) कौन किससे (अप्पा वा, बहया था, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक? (गोथमा! सव्वत्थोवा नेरच्या मेहुणसन्नोवउत्ता) सब से कम नारक मैथुनसंज्ञा के उपयोग वाले हैं (आहारसन्लोवउत्ता संखिज्जगुणी आहारसंज्ञा के उपयोगवाले संख्यातगुणा हैं (परिग्यहसन्लोवउत्ता संखिजगुणा) परिग्रहसंजा में उपयुक्त संख्यातगुणा हैं (भयसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा) भयसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातशुणा हैं । परिसर सजाभा उपयुत थ य छ ? (गोयमा !) 3 गौतम! (ओसन्न कारणं पडुच्च) प्रायः माह रानी अपेक्षाये (भयसन्नोवउत्ता) मय साना उपयोगवाणा'छ (संतइभावं पडुच्च) मात२४ अतुलनी २मपेक्षाये (आहारसन्नोवउत्ता वि जाव परिगह. संग्नोवउत्ता वि) मा २ संज्ञामा ५] यावत् ५२५ से शामा ५ ५युत थाय छ (एएसिणं भंते ! नेरइयोणं आहारसन्नोवउत्ताणं, भयसन्नोवउत्ताणं मेहुणसन्नोवउत्ताण, परिगहसन्नोवउत्ताण य) सावन् । माहा२ संज्ञामा उपयुत, लय सशामा, उपयुक्त, भैथुन सज्ञामा उपयुत, परियड सज्ञामा उपयुत, ना२मा (कयरे कयरेहिंतो) होनाथा (अप्पा वा वहुया वा तुल्लावा विसेसाहिया वा) २६५, ag! तुझ्य अथवा विशेषाधि छ ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा नेरइयामेहुणसन्नोवउत्ता) माथी माछना२४ मथुन सज्ञाना उपयोगवा छे (आहारसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा) मा २ सज्ञान उपयोग वाणा सभ्यात गा। छ (परिगहसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा) परियड सज्ञामा उपयुद्धत सभ्यात गए छ, (भयसन्तोवछत्ता संखिजगुणा) मय संज्ञामा उपयुक्त समयात गया छ
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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