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________________ प्रयापनास्त्रे पञ्च शरीरकाणि प्रजातानि, तद्यथा-औदारिकर, वैक्रियम्, आहारकम्, तैनसम्, कार्मणम्, दानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकानों यथा नारकाणाम् सू० १॥ __टीका-पूर्वोक्तरीत्या एकादशं पदं प्ररूप्य अश द्वादशं पदं प्ररूपयितु मारभते-तत्र पूर्वपदे जीवानां सत्यम्पादि भापायाः विभागः प्रतिपादितः, मापायाश्च शरीराधीनत्वं वर्तते 'शरीरप्रभवा भाषा' इत्यत्रैव तथोक्तेः, तत्र शरीरप्रस्तावा तत्प्रभेदान् प्ररूपचितुमाह-'कइ णं भंते ! सरीरा पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कति-क्रियन्ति खलु शरीराणि प्रज्ञप्तानिप्रपितानि सन्ति उत्पत्तिसमयादारभ्य प्रतिसमयं शीर्यन्ते क्षीयन्ते इति शरीराणि ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'पंच सरीरा पण्णत्ता' पञ्च शरीगणि प्रज्ञप्तानि 'तं जहा-ओरापण्णत्ता !) हे भगवन् ! मनुष्यों के लितने शरीर कहे हैं ? (गोयमा ! पंच सरीस्था पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच शरीर कहे हैं (तंजहा-ओरालिए, वेटचिए, आहारए, तेथए, कम्मए) ने इस प्रकार-औदारिक, दैनिय, आहारक तैजस कार्मण (वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा नेइयाणं) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के शरीर नारकों के समान । टीकार्थ-पूर्वोक्त प्रकार से ग्यारहवें पद का प्ररूपणा करके अब बारहवें पद की प्ररूपणा प्रारंभ की जाती है । ग्यारहवें पद में जीवों की सत्य असत्य आदि भाषा की प्ररूपणा की गई है, किन्तु भाषा शरीर के अधीन होती हैं। कहा भी है-'शरीरप्रभवा भाषा' अर्थात् भाषा का उद्भव शरीर से होता है, यह कथन पिछले पद में ही किया गया है । अतएव शरीर के प्रसंग को लेकर उसके भेदों का निरूपण करते हैं गौतमस्वामी पूछते हैं-भगवन् ! शरीर कितने कहे गए हैं ? उत्पत्ति के समय से लगातार प्रतिक्षण जो शीर्ण अर्थातू जर्जरित होते रहते हैं, उन्हें शरीर कहते हैं। सरीरया पण्णत्ता) गौतम ! पांय शरी२ ४i छे (तं जहा-ओरालिए, वेउविए, आहारए, तेयए-कम्मए) तेसो मारीत-मोह२४, वैश्य, मा.२४, तेस, आम (वाणमंतर जोइसियदेमाणियाणं जहा नेरइवाणं) पानन्तर, ज्योति, मन वैमानि हेवाना शरीर નારાના સમાન સમજવા. ટીકર્થ–પૂર્વોક્ત પ્રકારે અગીયારમા પદની પ્રરૂપણ કરીને હવે બરમાં પદની પ્રરૂપણાનો પ્રારંભ કરાય છે. અગિયારમાં પદમાં જીવેની સત્ય અસત્ય આદિ ભાષાની પ્રરૂપણ કરાઈ કિન્તુ ભાષા શરીરને આધીન હોય છે. કહ્યું પણ છે–“શરીર પ્રભવા ભાષા અર્થાત્ ભાષાને ઉદ્ભવ શરીરથી થાય છે, એ કથન પાછલા પદમાં જ કરાયેલું છે. તેથી જ શરીરનો પ્રસંગ લઈને તેમના ભેની પ્રરૂપણ કરે છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પૂછે છે-હે ભગવન શરીર કેટલા કહ્યા છે? ઉત્પત્તિના સમયથી શરૂ કરીને પ્રતિક્ષણ જે શીર્ણ અર્થાત્ જર્જરિત થતાં રહે છે, તે શરીર છે -
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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