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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ सू० १२ भापाद्रव्यनिसर्जननिरूपणम् ४०१ पकनया निसृजति मृपाभापकतया निमृजति, नो सत्यमृपाभापकतया निसृजति नो असत्यमृपा. भापकतया निसृजति, एवम्-सत्यमृपाभापकतयापि असत्यमृपाभापकतयापि एवञ्चैव, नवरम् असत्यमृपामापकदया विकलेन्द्रिा स्तथैव पृच्छयन्ते यानि चैव गृह्णाति तानि चैव निसृजति, एवम् एते एकत्वपृथक्त्वका अष्टदण्डका भणितव्याः॥सू० १२॥ - टीका-अथ भापाद्रव्याणां विसर्जन विशेपवक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह-'जीवेणं अंते !जाई दबाई सच्चभासत्ताए गिण्हड ताई कि सच्चभासत्ताए निसिरइ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! सच्चामोलभासत्ताए, असच्चामोसभासत्ताए निसरङ् ?) मृपाभावा सत्यामृषा भापा, या असत्याभूषा भाषा के रूप में निकालता है ? (गोयमा ! नो सच्चा सत्ताए निसरति, मोसमासत्ताए निसरति, णो सच्चामोसमालत्ताए निसरति, नो असच्चामोसभासत्ताए निसरति) हे गौतम ! सत्यभाषा के रूप में निकालता नहीं है, मृषाभाषा के रूप में निकालता है, सत्याभूषा भाषा के रूप में नहीं निकालता है, असत्यामृषा भाषा के रूप में भी नहीं निकालता । (एवं सच्चामोसभासत्ताए वि, असच्चामोसभासत्तार वि एवं चेव) इसी प्रकार सत्यामृषा भापा के रूप में और इसी प्रकार असत्यामृषा भाषा के रूप में भी (नवरं असच्चामोसभासत्ताए विगलि दिया तहेव पुच्छिज्जलि) विशेष असत्यामृषा भाषा के रूप में विकलेन्द्रियों की उसी प्रकार पृच्छा करनी चाहिए (जाए चेव गिण्हति, ताए चेव निसरति) जिस भाषा के रूप से ग्रहण करता है, उसी भाषा के रूप मे निकालता है (एवं चेव एते एगत्तपुहुत्तिया अदंडगा भाणियचा) इसी प्रकार ये एक बचन बहुवचन से आठ द डक कहने चाहिए। ___टीकार्थ-अब गृहीत भापा द्रव्यों को निकालने के विषय मे विशेष दक्तताए निसरइ ?) भूपालापा, सत्या भूषामाषा अ१२ असत्य! भृषा वापानी ३५मा ४ छ ? (गोयमा ! नो सच्चाभासत्ताए निसरति, मोसमासत्ताए निसरनि, णो सच्चामोसमासत्ताए निसरति, नो असच्चामोसभासत्ताए निसरति) 3 गोतमा सत्य सापान। ३५मां नथी કાઢતા, મૃષા ભાષાના રૂપમાં કાઢે છે સત્યામૃષા ભીષાના રૂપમાં નથી કહાડતા અસત્યા મૃષા ભાષા પણાથી પણ નથી કહાડતા. (एवं सच्चामोसभासत्ताए वि. असच्चामोसमासत्ताए मि एवं चेव) मे रे सत्या भृपा भाषाना ३५मा भने मे मारे २मसत्या भूषा मापान। ३५मा पY समावु (नवरं असच्चामोसमासत्ताए विगलि दिया तहेव पुच्छिज्जति) [वशेष मसत्याभूषा सापना ३५मां विसन्द्रियानी से प्रारे छ। ४२वी नमे (जाए चेव गिण्हति, ताए चेव निसरति) रे भाषाना ३५मां यह ४२ छ, तर भाषाना ३५मा महा२ छ (एवं चेव एते एगत्तपुहुत्तिया अट्ठदंडगा भाणियव्वा) से प्रारे मे मे क्यन-महुक्यनथी २४ ४ ४ नये. ટીકાWહવે ગ્રહીત ભાષા દ્રવ્યોને કાઢવાના વિષયમાં વિશેષ વક્તવ્યતા કહે છે प्र० ५१
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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