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________________ '२१० प्रज्ञापनासूत्रे चरमाः, अचरमाः ? गौतम ! चरमा अपि अचरमा अपि, एवं निरन्तरं यावद् वैमानिका:, नैरयिकः खलु भदन्त । वर्णचरमेण किं चरमः, अचरमः ? गौतम ! स्यात् चरमः स्यात् “अर्चरमः, एवं निरन्तरं यावद् वैमानिकाः, नैरयिकाः खलु भदन्त ! वर्णचरमेण किं चश्मा', 'अचरमाः ? गौतम ! चरमा अपि, अचरमा अपि, एवं निरन्तरं यावद वैमानिकाः, नैरयिकः "खल भदन्त ! गन्धनरमेण किं चरमः, अचरमः ? गौतम ! स्यात् चरमः स्यात् अचरमः, 'एवं निरन्तर' यावद् वैमानिकः, नैरयिकाः खलु भदन्त ! गन्धचरमेण कि चरमाः, अचरमाः ? 'गौतम ! चरमा अपि, अचरमा अपि एवम् निरन्तरं यावद् वैमानिकाः, नैरयिकः खलु 9 'भगवन् ! नारक क्या भाव चरम से चरम हैं या अचरम है ? (गोचमा ! चरमा 'वि अचरमा वि) गौतम ! चरम भी हैं, अवश्य भी हैं (एवं निरंतरं जाव वेमा ' "णिया) इसी प्रकार लगातार वैमानिकों तक । " ( नेरइया णं भते ! दण्णचरमेणं किं चरसे, अचरमे ?) हे भगवन् ! नारक 'वर्ण- चरम से चरम है या अचरम ! ( गोयमा ! सिय चरमे, सिय अचर मे) "गौतम ! कथंचित् चरम, कथंचित् अचरम है ( एवं निरंतरं जाच वैमाणिए) इसी ● प्रकार निरन्तर वैमानिक तक (नेरइया णं भते ! वण्णचरमेणं किं चरमा, 'अचरमा ?) हे भगवन् ! नारक क्या वर्ण- चरस से चरम है या अचरम ? (गोयमा ! चरिमा वि, अचरिमा वि) हे गौतम ! चरम भी हैं, अचरम भी हैं ( एवं निरंतर ' जाव देमाणिया) इसी प्रकार निरन्तर वैमानिकों तक | { 4 (नेरइए णं भते ! गंध चरमेणं किं चरमे, अचर से ?) हे भगवान् ! नारक गंधचरम से चरम है या अचरम ? (गोयमा ! लिय चरमे, सिय अचर मे ?) हे गौतम ! कथंचित् चरम है, कयंचित अचरम है ( एवं निरंतरं जाव वेमाणिए) इसी 1 - भथी यरभ छे अगर अयरभ छे ? (गोचना ! चरमा वि अचरमा वि) हे गौतम ! थरभ पालु छे, अयरभ याशु है ( एवं निरंतरं जाव वैमाणिया) से अहारे सतत वैमानिओ सुधी (नेरइएणं भंते ! चण्ण चरमेणं किं चरमे, अचरमे १) हे भगवन् । ना२४ व २भथी थरभ छे अगर यरभ छे ? (गोयमा । सिय चरमे, सिय अचर मे) हे गौतम / स्थथित् यरंभ, अथ थित् अयरम छे ( एवं निरंतरं जाव वैमाणिए) मेन प्रहारे निरन्तर "वैभानि४ सुधी (नेरइयाणं भंते । वण्ण चरमेणं किं चरमा, अचरमा ? ) हे भगवन् ! नार " 'वर्षा' थरभथी यरभ है अगर अथरभ है? (गोयमा ! चरमा वि, अचरमा वि) . जीतभ ! यरभय छे, अयरभ पशु छे (एवं निरंतरं नाव वैमाणिया) भेन अरे निरન્તર વૈમાનિકા સુધી - ( नरइएणं भंते! किं गंध चरमेणं किं चरमे, अचरमे १) ना२४ गंध थरभथी यरभ अगर यरभं ? (गोयमा ! सिय चरमे सिय अचरमे १) हे गौतम! थयित् थरभ ४थयितु अथरभ छे ( एवं निरंतरं जाव वैमाणिए ) ४ अक्षरे निरन्तर 'वैभानिः सुधी
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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