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प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू०७ जीवादिचरमाचरमनिरूपणम्
२०७ धैमानिकाः, नैरयिकः खल भदन्त ! स्थितिचरमेण किं चरमः, अचरम: ? गौतम ! स्यात् चरमः स्यात् अचरमः एवं निरन्तरं यावद् वैमानिकः, नैरयिकाः खलु भदन्त ! स्थितिचरमेण किं चरमाः, अचरमाः १ गौतम ! चरमा अपि, अचरमा अपि, एवं निरन्तरं यावद वैमानिकाः, नैरयिकः खलु भदन्त ! भवचरमेण किं चरमः, अचरमः ? गौतम ! स्यात् चरमः, स्यात् अचरमः, एवं निरन्तरं यावद् वैमानिकः, नैरयिकाः खलु भदन्त ! भवचरमेण किं चरमाः, रिमा?) हे भगवन् ! नारक गति चरम से क्या चरम हैं या अचरम हैं ? गोंयमा! चरिमा वि अचरिमा वि) हे गौतम ! चरम भी हैं, अचरम हैं । (एवं निरंतरं जाव वेमाणिया) इसी प्रकार लगातार वैमानिकों तक । __(नेरइए णं भंते ! ठिइ चरमेणं किं चरमे, अचरमे ?) हे भगवन् ! नारक स्थितिचरम से क्या चरम है या अचरम ! (गोयमा ! सिय चरमे सिय अचरमे) हे गौतम ! कथंचित् चरम, कथंचितू अचरम है (एवं निरंतरं जाव वेमाणिया) इसी प्रकार लगातार वैमानिक तक (नेरइया णं भंते ! ठिइचरमेणं किं चरिमा, अचंरिमा) हे भगवन् ! नारक स्थिति चरम से चरम हैं या अचरम है ? (गोयमा! चरमा वि अचरमा वि) हे गौतम ! चरम भी, अचरम भी (एवं निरंतरं जाव वेमाणिया) इसी प्रकार लगातार वैमानिकों तक। " (नेरहए णं भंते ! भव चरमेणं किं चरमे, अचरमे ?) भगवन् ! नारक भव. चरम से चरम है या अचरम ? (गोयमा ! सिय चरमे, सिय अचरमे) के गौतम । कथंचित् चरम, कथंचित् अचरम है (एवं निरंतरं जाव वेमाणिए) इसी प्रकार निरन्तर वैमानिकतक (नेरइंया णं भंते ! भवचरमेणं किं चरमा, अचरमा ?) 'रिमा वि गौतम ! य२म by छ । भयरम ५४'छे (एवं निरंतरं जाव वेमाणिया "એજ પ્રકારે સતત વૈમાનિકે સુધી :: (नेरइएणं भंते ! ठिइ चरमेणं किं चरमे-अचरमे ?) 8 लगवन् ! ना२४ स्थिति यरम थी शु': य२भ' छे मगर भन्यरभ ? (गोयमा ! सिय चरमे, सिय अचरिमे) 3 गौतम ! '४थायित् यरभ, ४थयित मन्यरभ छे' (एवं , निरंतरं जाव वेमाणिए) से प्रारे सतत
वैमानिकी सुधी (नेरइयाणं भंते । ठिइ चरमेणं किं चरिमा, अचरिमा ?) ३ मावन् ! ना२४ स्थितिथी ,यम छ मगर भयरम छ ? (गोयमा ! चरमा वि अचरमा वि) गौतम । यम ५६ छ भन्यम पर (एवं निरतरं जाव वेमाणिया) प्रहारे सतत वैमानिकी सुधी '। (रंइयाणं भंते भव. चरमेणं किं ,चरमे, अचरमे, १) भगवन् । ना२४ मप य२भयो यरम छे अगर भयरम छ १ (गोयमा सिय चरमे, सिय अचरमे) गौतम! ४थायित् यम थायित् मन्यम छे १- (एवं निरंतर जाव वेमाणिए) मे रे निरन्तर वैमानि सुधी (नेरइयाणं भंते । भवचरमेगं किं चरमा, अचरमा ?) हे भगवन् । नयि भ५ यरभथी य२म छ १ अथवा भयरम छ ? (गोयमा ! चरमा वि अचरमा वि) गौतम !