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________________ प्रनापनासूत्रे । शिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणाष्टाविंश स्थापना रीत्या समश्रेण्या व्यवस्थितेषु त्रिपु आकागप्रदेशेषु 'अवगाहते तत्र एकैकस्मिन् आकाशप्रदेशे द्वौ द्वौ परमाणु वर्तेते तदाऽऽद्यप्रदेशवर्तिनी द्वौ परमाणू चरमः, द्वौ चान्त्यप्रदेशवर्तिनौ चरम इति चरमौ, द्वौ तु मध्यप्रदेशवर्तिनी अचरम इति तत्समुदायात्मक पप्रदेशिकस्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमञ्च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाई य अचरमाई य१०' पट्मदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् चरमौ चाचरमौ च' इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा पट्प्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्ययाणकोनत्रिंशस्थापनारीत्या समश्रेण्या व्यवस्थितेषु 'चतुर्यु आकाशप्रदेशेषु अवगाहते तत्राये प्रदेशे द्वौ परमाणू द्वितीये प्रदेशे द्वौ परमाणू तृतीये प्रदेशे एकः परमाणुश्चतुर्थे च प्रदेशे एकस्तदाऽऽद्यप्रदेशवर्तिनी द्वौ परमाणू चरमः, अन्त्यप्रदेशवर्ती चैकः परमाणुश्चरमः, इति चरमौ, द्वौ च परसाणू द्वितीयप्रदेशवर्तिनी अचरमः, तृतीयप्रदेशवर्तिपरमाणुश्चैकोऽचरम इति अचरमावपि द्वौ संजातौ इति तत्समुदायात्मक पप्रदेशिकप्रदेशों में अवगाहन करता है, और एक-एक आकाशप्रदेश में दो-दो परमाणु रहते हैं, तव आध प्रदेश में रहे हुए दो परमाणु 'चरम' और अन्तिम प्रदेश में *स्थित दो परमाणु भी 'चरम,' यों दोनों मिलकर 'चरमौ' कहलाए तथा मध्यवर्ती दो प्रदेश 'अचरम' कहलाए । समग्र स्कंध 'चरमो-अचरम' कहलाया। षट्प्रदेशी स्कंध 'चरमो-अचरमौ' भी कचित् कहा जा सकता है। वह इस प्रकारजब कोई षट्प्रदेशी स्कंध आगे कही जानेवाली उनतीसवीं स्थापना के अनुसार समश्रेणी में अवस्थित चार आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है और उनमें से आद्यप्रदेश में दो परमाणु, द्वितीय प्रदेश में दो परमाणु, तीसरे प्रदेश में एक और चौथे प्रदेश में एक परमाणु होता है, तब आद्यप्रदेश में स्थित दो परमाणु चरम और अन्तिम प्रदेश में स्थित एक परमाणु भी चरम कहा जाता है। यों दो "चरम 'चरमौ' हुए, दूसरे प्रदेश में स्थित दो परमाणु 'अचरम' हैं, तीसरे प्रदेश पप्रडेशी २४न्ध 'चरम-अचरमौ' ५५ उपाय छे. न्यारे षट्शी २४.मागण કહેવામાં આવનાર અઠયાવીસમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણીમાં સ્થિત ત્રણ પ્રદેશમાં - અવગાહન કરે છે, અને એક–એક આકાશ પ્રકાશમાં બે બે પરમાણુ રહે છે, ત્યારે આઘ प्रशभा रडेसा मे ५२मा 'चरम' मने मन्तिम प्रदेशमा स्थित मे परमार पशु 'चरम' सम मन्ने मजीने 'चरमौ' उवाया तथा मध्यवती मे प्रदेश 'अचरम' उपाया, समय २४५ 'चरमौ, अचरम' पाया. पशी २४.५ 'चरमौ-अचरमौ पशु ४थयित्वाश छे. ते ॥ ४ारेજ્યારે કંઈ ષણ્વદેશી સ્કન્ધ આગળ કહેવાશે તે ઓગણત્રીસમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણીમાં અવસ્થિત ચાર આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે, અને તેઓમાથી આદ્યપ્રદેશમાં બે પરમાણુ દ્વિતીય પ્રદેશમાં બે પરમાણુ ત્રીજા પ્રદેશમાં એક અને ચેથા પ્રદેશમાં એક 'પરમાણુ હોય છે. ત્યારે આદ્ય પ્રદેશમાં સ્થિત બે પરમાણુ ચરમ, અને અન્તિમ પ્રદેશમાં स्थित मे४ ५२मा ५ य२५ ४२वाय छे. म भन्न ३२म 'चरमौ' थया. मात्र प्रह
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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