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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम् १४१ एकः परमाणुर्विश्रेणिस्थे आकाशप्रदेशे वर्तते, द्वौ च परमाणू अन्यस्मिन् विश्रेणिस्थे आकाश प्रदेशे वर्तते तदा द्वौ परमाण समश्रेणि व्यवस्थित द्विप्रदेशावगाढौ द्विप्रदेशावगाढ द्विप्रदेशिकस्कन्धवच्चरमः, एको द्वौ च विश्रेणिस्थ पृथक्-पृथगेकैकाकाशप्रदेशावगाढौ चावक्तव्यो भवतः-इति तत्समुदायात्मकः पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धोऽपि 'चरमश्वावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाई च अवत्तव्वए य १३' पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् , चरमौ चावक्तव्यश्च, इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा खलु पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणविंशस्थापनारीत्या पञ्चस्तु आकाशप्रदेशेषु अवगाहते तत्र द्वौ परमाणू उपरि समश्रेण्या व्यवस्थितयोयोराकाशप्रदेशयोरवगाढौ वर्तेते, द्वौ च परमाणू अधस्तात् समश्रेण्या व्यवस्थितयोईयोराकाशप्रदेशयोरवगाढी क्र्तेते, एकश्च परमाणुः पर्यन्ते मध्यसमे वर्तते तदा द्वौ उपरितनौ स्थित आकाशप्रदेश में रहता है और दो परमाणु किसी दूसरे विश्रेणी में स्थित आकाशप्रदेश में रहते हैं, तब दो परमाणु, समश्रेणी में स्थित द्विप्रदेशावगाढ होते हैं। वे डिप्रदेशावगाढ दिप्रदेशी स्कंध के समान 'चरम' कहलाते हैं । एक और दो, जो विश्रेणी में स्थित पृथक्-पृथक् एक-एक आकाशप्रदेश में अवगाढ होते हैं, वे 'अवक्तव्यो' कहलाते हैं । इस प्रकार समग्र स्कंध मिलकर 'चरम-अवक्तव्यौ कहा जाता है। पंचप्रदेशी स्कंध कथंचित् 'चरमौ-अवक्तव्य' भी कहा जाता है । वह इस प्रकार-जय पंचप्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली वीसवीं स्थापना के अनुसार पांच आकाशप्रदेशों में अवगाहन करता है, उनमें से दो परमाणु ऊपर समश्रेणी में स्थित दो आकाशप्रदेशों में अवगाढ होते हैं, दो परमाणु नीचे समश्रेणी में स्थित दो आकाशप्रदेशों में अवगाढ होते हैं और एक परमाणु अन्त में बीचोंबीच में स्थित होता है, तब दो ऊपर के परमाणु द्विप्रदेशावगाढ द्विप्रदेशी રહે છે, અને એક પરમાણુ કે વિશ્રેણીમાં સ્થિત આકાશ પ્રદેશમાં રહે છે. અને બે પરમાણુ કઈ બીજી વિશ્રેણીમા સ્થિત આકાશ પ્રદેશમાં રહે છે, ત્યારે બે પરમાણુ, સમશ્રેણીમાં સ્થિત ઢિપ્રદેશાવગાઢ થાય છે. તે ક્રિપ્રદેશાવગાઢ ક્રિપ્રદેશી સેકન્ડના સમાન 'चरम' ४२वाय छे. ये मन में विश्रेणीमा स्थित पृथ६ पृथ५ थेये मा४१२ प्रदेशमा १८ थाय छ, तमा “अवक्तव्यौ" ४२वाय छे.. ये प्रसार समय २४५ भजीन 'चरम-अवक्तव्यौ ४२वाय छ पय प्रदेशी २४५ ४थयित् चरमौ-अबक्तव्य ५] ४ाय छे. ते मा शत-न्यारे પંચ પ્રદેશી અન્ય આગળ કહેલી વીસમી સ્થાપનાના અનુસાર પાંચ આકાશ પ્રદેશમાં અવગાહન કરે છે. તેમાંથી બે પરમાણુ ઉપર સમશ્રેણીમાં સ્થિત બે આકાશ પ્રદેશોમાં અવગાઢ થાય છે. બે પરમાણુ નીચે સમશ્રેણીમાં સ્થિત છે આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે. અને એક પરમાણુ અંતમાં વચ્ચે વચ્ચે સ્થિત રહે છે. ત્યારે બે ઊપરના પરમાણુ
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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