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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम् १४७ परमाणुमध्ये आकाशप्रदेशे वर्तते तदा आद्यप्रदेशावगाढौ द्वौ चरमोऽन्त्यप्रदेशावगाढौ द्वौ च चरम इति चत्वारस्ते चरमौ, मध्यमस्तु परमाणुमध्यवर्तित्वादचरमो भवति तदुभयात्मकः पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमश्च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाई य अचरमाई य १०' पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात-कदाचित, चरमौ चाचरमौ च' इति व्यपदिश्यते, तथाहि-यदा खलु वक्ष्यमाण सप्तदशस्थापना१७रीत्या समश्रेण्या व्यवस्थितेषु चतुर्यु आकाशप्रदेशेषु पञ्चप्रदेशात्मकः स्कन्धोऽवगाहते तत्र त्रयः परमाणवस्त्रिपु आकाशप्रदेशेषु वर्तन्ते, एकस्मिन् आकाशप्रदेशे च द्वौ परमाणू वर्तेते तदा आद्याकाशप्रदेशवती परमाणुश्वरमः, अन्त्यप्रदेशवर्तिनौ च द्वौ परमाणू चरम इति तत्त्रयं चरमौ, द्वौ च मध्यवर्तिनौ परमाणू मध्यवर्तिस्वादचरमौ भवतः इति तत्समुदायात्मकः पश्चप्रदेशिकः स्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमौ च' आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है, उनमें से दो परमाणु आद्य आकाशप्रदेश में, दो अन्तिम आकाशप्रदेश में और एक परमाणु मध्य के आकाशप्रदेश में स्थित होता है, तब आद्यप्रदेशावगाढ दोनों चरम और अन्तिम प्रदेशावगाढ दोनों भी चरम, इस प्रकार वे चारों चरम कहलाते हैं और मध्य का परमाणु मध्यवर्ती होने से अचरम कहलाता है। इस प्रकार समग्र पंचप्रदेशी स्कंध 'चरमो-अचरम' कहा जाता है। '. पंचप्रदेशी स्कंध को कथंचित् 'चरमौ-अचरमौ' भी कह सकते हैं, क्यों कि जब आगे कही जाने वाली सत्तरहवीं स्थापना के अनुसार समश्रेणी में स्थित चार आकाशप्रदेशों में पंचप्रदेशी स्कंध अवगाढ होता है, और उनमें से तीन परमाणु तीन आकाशप्रदेशों में रहते हैं और दो परमाणु एक अकाश में रहते हैं, तव आद्य आकाशप्रदेशवर्ती दो परमाणु चरम, इस प्रकार तीन परमाणु चरमौ' और मध्य के दो परमाणु 'अचरमौ' होते हैं । सव का समूह भूत पंचप्रदेशी स्कन्ध 'चरमो-अचरमौ' कहलाता है। पंचप्रदेशी स्कंध कथंचित चरमગાઢ થાય છે, તેમનામાથી બે બે પરમાણુ આ આકાશ પ્રદેશમાં, બે અતિમ આકાશ પ્રદેશમાં અને એક પરમાણુ મધ્યના આકાશ પ્રદેશમાં સ્થિત હોય છે, ત્યારે આદ્ય પ્રદેશાવગાઢ બને ચરમ અને અન્તિમ પ્રદેશાવગાઢ બને પણ ચરમ, આ પ્રકારે તે ચારે ચરમ કહેવાય છે અને મધ્યના પરમાણુ મધ્યવર્તી હોવાથી અચરમ કહેવાય છે, એ પ્રકારે समय पय अशी २४ 'चरमौ-अचरम' ४वाय छे. ५य प्रदेशी २४.५ ४थायित् 'चरमौ-अचरमौ' पाडी शय छ, म मागण કહેવાશે તે સત્તરમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણીમાં સ્થિત ચાર આકાશ પ્રદેશમાં પંચ પ્રદેશી સ્કન્ધ અવગાઢ થાય છે, અને તેમનામાથી ત્રણ પરમાણુ ત્રણ આકાશ પ્રદેશમાં રહે છે અને બે પરમાણુ એક આકાશમાં રહે છે. ત્યારે આદ્ય આકાશ પ્રદેશવતી પરમાણ यरम, मतिम प्रशती 2. ५२मा ३२भ, ये शेते य ५२मा, चरमौ भने मध्यना
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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