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________________ १३४ प्रतापनासूत्रे ॥ २ ॥ प्रथमस्तृतीयः सप्तमनवमदशमैकादशद्वादश त्रयोदशः । त्रयोविंगचतुर्विशः पश्च शिव पञ्चमके || ३ || द्विचतुर्थपश्चमपष्ठं पञ्चदशपोडशञ्च सप्तदशाष्टादशम् । विशैकविंशद्वाविंशश्व वर्जयेत् षष्ठे ॥ ४ ॥ द्विचतुर्थपञ्चमषष्ठं पञ्चदशपोडशञ्च सप्तदशाष्टादशम् । द्वाविंशञ्च विहाय सप्तप्रदेशे स्कन्धे || ५ || द्विचतुर्थपञ्चमपटं पञ्चदशपोडशञ्च सप्तदशाष्टादशम् । एतान् वर्जयित्वा भङ्गाः शेषाः शेषेषु स्कन्धेषु ॥ सू० ५ ॥ टीका-अथ द्विप्रदेशिकादि स्कन्धानां चरमाचरमत्वा दिवक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह- 'दुपएसिएणं संते ! खंधे पुच्छा' हे भदन्त । द्विप्रदेशिकः खलु स्कन्धः किं चरमो भवति ? किं प्रथम, तृतीय, सप्तम, नवम, दशम, ग्यारहवां, बारहवाँ, तेरहवां, तेईसवां, चौवीसवां और पच्चीसवां संग पाये जाते हैं (छमि) पद्मदेशी स्कंध में (वि उत्थ- पंच-छहं) दूसरे, चौथे, पांचवे, छठे को (पन्नरस - सोलं च सत्तरसङ्कारं ) पन्द्रहवे, सोलहवें, सत्तरहवें, अठारह वें (वीसेवकवी सबावीसगं च वज्जेज्ज) वीसवें, इक्कीसवें और बाईसवें को छोडकर (सत्तपदे सम्मि खंधम्मि) सप्तप्रदेशी स्कंध में (वि- स्थ-पंच-छहं) दूसरे, चौथे, पांचवे, छटे (पण्णर-सोलं च सत्त रहारं ) पन्द्रहवे, सोलहवे, सत्रहवे, अठारहवे (वाईसइम) बाईसवें के (विहृणा) विना (लेसेसु खंधेसु) शेष स्कंधों में (वि- चउत्थ - पंच-छहं) दूसरे, चौथे, पांचवें, छठे (पण्णर - सोलं च) पन्द्रहवें और सोलहवें ( सत्तरद्वारं) सत्रहवें, अठारहवें, ( एते गंगा वज्जिय) इन मंगों को छोड कर (सेसा भंगा) शेष भंग पाये जाते हैं। टीकार्थ- अब डिप्रदेशी आदि स्कंधों के चरमत्व - अचरमत्व आदि की वक्तव्यता प्रारंभ की जाती है । श्रीगौतमस्वामी ! प्रश्न करते हैं- भगवन् ! क्या द्विप्रदेशी स्कंध चरम (पंचमए) पथ प्रदेशी अन्धमा प्रथम, तृतीय, सप्तम, नवम, दशभ, अशीयारभो, गारभो, तेरभेो, तेवीसभा, यावीसभा भने परीसभा लग भजी आवे छे (छटुंम्मि) षष्ठ अहेशी २४न्धमा (वि चउत्य-पंच-छ ) मीले, थोथे, पायमो, छट्ठो (पन्नरस - सोलं च सत्तरस अट्ठार) पन्द्रभो, सोभो, सत्तरभो, अठारमेो (वीसक्कवीसवावीसगं च वज्जेज्ज) वीसभा श्रेष्ठवीसभा, यात्रीसमाने छोडीने (सत्त पदेसम्म संचम्मि) सस अहेशी अन्धभां (विचउत्थ - पंच-छहूं) मीले, थोथो, पांयमी, छट्ठो (पण्णर - सोलं च सतरसद्वार) पन्ह२भा सोझभो, सत्तरभो, मढारभो (बाईसइम) मावीसभाने (विहूणा ) विना (सेसेसु संघेसु) शेष २४-धामा (वि- चउत्थ - पंच-छहूं) मीले, थोथो, पायमो, छट् । (पण्णर - सोलं च ) यद्दरमा भने सोसभा (सत्तरद्वार) सत्तरभो भने मढारभेो (एते भंगा वज्जिय) मा लगे सिवायना (सेसा भंगा) शेष लग भजी भावे ટીકા-હવે દ્વિપ્રદેશી આદિ કન્યાના ચરમત્વ આદિની વક્તવ્યતાના પ્રારભ राय -
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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