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________________ ९१० शापासूत्रे भ्यधिकः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, वर्णगन्धरसोपरितनः चतुःस्पर्शपर्ययेः पद् स्थानपतितः, उत्कृष्टप्रदेशिकानां भदन्त ! स्कन्धानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः : प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - उत्कृष्ट प्रदेशिकानां स्कन्धा - नामन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! उत्कृष्टप्रदेशिकः स्कन्धः उत्कृष्ट प्रदेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः, स्थिरया चतुःस्थानपतितः, वर्णादि अष्टस्पर्शपर्यवैश्च पट्स्थानपपतितः, अगर अधिक हो तो एक प्रदेश अधिक (टिईए चउट्ठाणचडिए) स्थिति से चतुस्थानपतित (वण्ण गंधरसउवरिल्ल चउफासेहिं छट्टाणवडिए) वर्ण, गंध, रस और ऊपर के चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित (उक्को सपएसियाणं संते ! खंधाणं पुच्छा ) हे भगवन् ! उत्कृष्ट प्रदेश वाले स्कंधों की पृच्छा ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं ( से केणद्वेगं भंते 1 एवं बच्चइउक्को सपएसियाणं संधाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? ) किस कारण हे भगवन् ? ऐसा कहा जाता है कि उत्कृष्ट प्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? ( गोयमा !) हे गौतम ! ( उक्कोसपएसिए खंधे उक्कोसपएसियस्स खंधस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) उत्कृष्ट प्रदेशी स्कंध, उत्कृष्ट प्रदेशी स्कंध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य होता है (ओगाहणट्टयाए) अवगाहना से (चउट्टहाण वडिए) चतु:स्थानपतित (टिईए चउट्ठाणचडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (वण्णा हीणे) ले हीन होय तो भेउ अहेश डीन ( अह अब्भहिए पएसमव्भहिए ) अगर अधिष्ठ होय तो मे प्रदेश अधि (ठिईए चट्टानवडिए) स्थितिथा तुःस्थान पतित (वण्णगंधरसउवरिल्ल चउफासेहिं छट्टाणवडिए) वर्षा, गंध, રસ અને ઊપરના ચાર સ્પથી ષટ્રૂસ્થાનપતિત થાય છે. (उक्कोसपएसियाणं भंते ! खंधाणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! उत्ष्ट प्रदेशवाणी २४न्धोनी पृछा ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय ४ छे (सेकेणट्टेणं ते एवं बुच्चइ - उक्कोसपएसियाणं संधाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता १) शा भरणे हे भगवन् ! सेभ हेवाय हे उत्कृष्ट प्रदेशी २४न्धाना अनन्त पर्याय ह्या छे ? (गोयमा !) हे गौतम! ( उक्कोसपएसिए खंधे उक्कोसपएसियस्स खंधस्स व्वट्टयाए तुल्ले) उत्प्ट प्रदेशी धष्ट अदेशी स्४न्धथी द्रव्यनी अपेक्षाये तुझ्यछे (परसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशोथी तुझ्य थाय छे (ओगाहणट्टयाए) अवगाहनाथी (चउट्ठाणवडिए) यतुःस्थान पतित (ठिईए चउट्ठाण वडिए) स्थितिथी यतुःस्थानपतित (वण्णा अट्ठफासपज्जवेहिंय छट्टाणवडिए) वर्णाद्दिथी
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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