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________________ ८७४ प्रज्ञापना पतितः एवमुत्कृष्टगुणकालकोऽपि, अजघन्यानुत्कृष्टगुणकालकोऽपि एवञ्चैव, नवरं स्वस्थाने पट्स्थानपतितः, एवं नीललोहित हारिद्र शुक्लसुरभिगन्ध दुरभिगन्धतिक्तकटुकपायाम्लमधुररसपर्यवैश्व वक्तव्यता भणितण्या, नवरं परमाणुपुद्गलस्य मुरभिगन्धम्य दुरभिगन्धो न भण्यते, दुरभिगन्धस्य मुरभिगन्धो न भण्यते, तिक्तस्य अवशेष न भण्यते, एवं कटुकादीनामपि, अवगेपं तच्चैव, जघन्यगुणकर्कशानाम् अनन्तप्रदेशिकानां स्कन्धानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः ग्रनसाः, तत् (एवं उक्कोखगुणकाला वि) इसी प्रकार उस्कृष्टगुण काला भी (अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए चि एवं चव) मध्यमगुण काला भी इसी प्रकार (नवरं सहाणे ठाणवडिए) विशेष यह कि स्वस्थान में पस्थानपतित है (एवं नीललोहिय हालिमुक्किल्लमुन्मिगंधदुन्भिगंधतितकडकसायअंबिलमहररसपज्जवेहि य बत्तब्धया भाणियव्वा) इसी प्रकार नील, रक्त, पीत, शुक्ल वर्ण, सुगंध, दुर्गन्ध, तिक्त, कटुक, कपाय, खट्टे, मीटे रस के पर्यायों से भी वक्तव्यता कहनी चाहिए (नवरं) विशेष (परमाणुपोग्गलस्ल सुम्मिगंधस्स दुन्मिगंधान भण्णह) सुगंध वाले परमाणुपुदगल में दुगंध नहीं कहना (दुभि गंध. स्स सुभिगंधो न भण्णइ) दुर्गध वाले में सुगंध नहीं कहना (तित्तस्स अवलेसा न भण्णइ) तिक्त रसवाले में शेष रस नहीं कहना (एवं कडुयादीण वि) इसी प्रकार कडक रल वाले आदि में भी (अवसेसं तं चेव ) शेष वही __(जहण्णगुणकक्खडाणं अणंनपएसियाणं खंधाणं पुच्छा ?) जघन्य (एवं उक्कोसगुणकालए वि) ये मारे घट शुरु ७ पषु (अजहण्ण मणुकोसगुणकालए वि एवं चेव) मध्यम गुए) ! ५५ से १५ ारे (नवरं सटाणे छट्ठाणवडिए) विशे५ से १ स्थानमा ५८स्थान पतित छे (एवं नील लोहिय हालिह सुकिल्ल सुन्भिगंध दुन्भिगंध तित्त कडु कसाय अंबिल महुररस पज्जवेहिय वत्तव्वया भाणियब्या) में मारे नीम-२२१ पीत, शुस, वर्ष સુગંધ, દુર્ગધ, તિક્ત, કટુક, કષાય, ખાટા, મીઠા રસના પર્યાની પણ पतव्य वी नये (नवर) विशेष (परमाणुपोग्गलस्स सुन्भिगंधस्स दुभिगंधो न भण्णइ) सुशव ५२भार मां हु डती नथी (दुन्भिगंधम्स सुभिगंधो न भण्णइ) हु मा सुध न वी (तित्तस्स अवसेसा न भण्णइ) तित २सयामा शेष २स न ४ा (एवं कडयादीण वि) न्मे मारे ४४४ २सवाणा मादिमा पY (अवसेलं ते चेव) विशेष तर (जहण्णगुणकक्खडाणं अणंतपएसियाणं खंधाण पुच्छा ?) धन्य शुष्प
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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