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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ५ सू.१५ जघन्यगुणकालकादिपर्यायनिरूपणम् ८७१ स्थानपतितः, स्थित्या चतु:स्थानपतितः, कृष्णवर्णपर्यवेन्तुल्यः, अबशेपैः वर्णादि -उपरितनचतु:स्पशैश्च पट्स्थानपतितः, एवमुत्कृष्टगुणकालकोऽपि एवम् अजघन्यानुत्कृष्टगुणकालकोऽपि, नवरं स्वस्थाने पट्स्थानपतितः, जघन्यगुणकालकानां भदन्त ! असंख्येयप्रदेशिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जघन्यगुणकालकानामसंख्येयप्रदशिकानामनन्ताः जघन्यगुण काले पुद्गलस्कंध से द्रव्य से तुल्य (पएसट्टयाए) प्रदेशों से दुट्टाणवडिए) द्विस्थानपतित (ओगाहणट्टयाए दुट्टाणवड़िए) अवगाहना से विस्थानपतित (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (कालवण्णपजवेहिं तुल्ले) कृष्ण वर्ण के पर्यायों से तुल्य (अवलेसेहिं उवरिल्लचउफासेहि य) वर्णादि से तथा ऊपर के चार स्पर्शो से (छठाणवडिए) षटूस्थानपतित (एवं उक्कोसगुणकालए वि) इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काला भी (एवं अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि) इसी प्रकार मध्यमगुण काला भी (नवरं) विशेष (सट्टाणे छट्ठाणवडिप) स्वस्थान में पदस्थानपतित है (जहण्णगुणकालयाणं भंते ! असंखेजपएसियाणं पुच्छा ?) जघन्यगुण कालेअसंख्यातप्रदेशी स्कंधों के हे भगवन् ! कितने पर्याय हैं? (गोयमा ! अणता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय हैं (सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहण्णगुणकालयाणं असंखेज्जपएसियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) किस कारण हे भगवन् ! ऐसा कहा है कि जघन्य કાળા બીજા સંખ્યાત પ્રદેશી જઘન્ય ગુણ કાળા પુદ્ગલ સ્કન્ધથી દ્રવ્યથી તુલ્ય (पएसयाए) प्रशाथी (दुद्वाणवडिए) विस्थान पतित (ओगाहणयाए दुवाण वडिए) गानाथी हिस्थान पतित (ठिइए चट्टाण वडिए) स्थितिथी यतु:स्थान पतित (कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले) ४.प ना पर्यायथा तुझ्य (अवसेसेहिं उवरिल्लचउफासेहिय) वहिथी तथा ५२न। २ २५था (छद्राण वडिए) पट्थान पतित (एवं उकोसगुणकालए वि) मे रे ट गुए आपy (वं अजहण्णमणुकोसगुणकालए वि) मे शत मध्यम गुर १ ५Y (नवर शेष (मट्ठाणे छट्ठाणवडिए) स्थानमा पदस्थान पतित (जहण्णगुणकालयाणं भंते ! असंखेन्जपरसियाणं पुच्छा ?) अन्य गुण असभ्यात अशी धोना र समपन् । सा पर्याय 2 ? (नायमा ! अणंतो पज्जवा पण्णत्ता) ई गौतम । अनन्त पर्याय छ (से येणटेणं ते । एवं बुचइ-जहण्णगुणकालयाणं असंखेज्जपण्सियाणं अणता पन्जया पण्णता) ॥ કારણે હે ભગવન્! એવું કહ્યું છે કે જઘન્ય ગુણ કાળા અસંખ્યાત પ્રદેશી
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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