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________________ ७९२ महापनास पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवं उच्यते-एकप्रदेशावगाढानां पुद्गलानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! एक प्रदेशावगाढः पुद्गल: एकप्रदेशावगाढस्य पुद्गलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया पट्स्थानपतितः, अवगाहनार्थतया तुल्यः स्थित्या चतुःस्थानपतितः, वर्णादिभिरुपरितनचतुःस्पर्श : पट्स्थानपतितः एवं द्विप्रदेशावगाढोऽपि, संख्येयप्रदेशावगाढानां पृच्छा ! गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एव मुच्यते-संख्येयप्रदेशातगाढानामनन्ताः पर्यवा-प्रज्ञप्ता ? गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-एगपएसागाढाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किसकारण ऐसा कहा कि एक प्रदेश में अवगाढ पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं (गोयमा ! एगपएसोगाढे पोग्गले एगयएमोगाढस्स पोग्गलस्स व्वयाए तुल्ले) एक प्रदेश में अवगाढपुदगल दूसरे एक प्रदेश में अवगाढ पुदगल से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य है (पएसट्टयाए छटाणवडिए) प्रदेशों की दृष्टि से षटूस्थानपतित है (ओगाहणट्टयाए तुल्ले) अवगाहना से तुल्य है (ठिईए चउहाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित है (वण्णाइउवरिल्ल चउफासेहिं छट्ठाणवडिए) वर्णादि से तथा उपर्युक्त चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित है __(एवं दुपएसोगाढे वि) इसी प्रकार द्विप्रदेशावगाढ भी (संखिल्लपएसोगाढाणं पुच्छा ?) संख्यातप्रदेशावगाढ स्कंधों के पर्यायो की पृच्छा ? (गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-संखिज्जपएसोगाढाणं अणंता पजवा पण्णत्ता) २७॥ ? (गोयमा | अणंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम | मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणठेणं भंते । एवं वुच्चइ-एगपएसोगाढाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) ભગવન્! શા કારણે એમ કહ્યું છે કે એક પ્રદેશાવગાઢ પુદ્ગલેના અનંત પર્યાય छ (गोयमा। एगपएसोगाढे पोग्गले एगपएसोगाढस्स पोग्गलस्स दवट्याए तुल्ले) એક પ્રદેશમાં અવગાઢ પુદ્ગલ બીજા એક પ્રદેશમાં અવગાઢ પુદ્ગલથી દ્રવ્યની ष्टिये तुल्य छ (पएसद्वयाए छट्ठाणवडिए) प्रशानी हैटिये ५८२थान पतित छ (ओगाहणट्ठयाए तुल्ले) माईनाथी तुक्ष्य छ (ठिईए चउट्ठाण वडिए) स्थितिथी यतु:स्थान पतित छे (वण्णाइ उवरिल्लचउफासेहिं छट्ठाण वडिएं) पहिथी तथा ઉપર્યુક્ત ચાર સ્પર્શથી ષટસ્થાન પતિત છે (एवं दुपएसोगाढे वि) से शत विप्रशा५Y (संखिज्ज पएसोगाढाणं पुच्छा ?) सज्यात प्रशावगाढ २४ घाना पर्यायानी छ ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) 3 गौतम | मनन्त पर्याय ४ा छे (से केणद्वेणं भंते ! एवं
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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