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________________ ६९२ प्रशापनास्त्रे प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यस्थितिको द्वीन्द्रियो जघन्यस्थितिकस्य द्वीन्द्रियस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः, स्थित्या तुल्यः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः द्वाभ्याम् अज्ञानाभ्याम् अचक्षुर्दर्शनपर्यवैश्च पट्स्थानपतितः, एवमुत्कृष्टस्थितिकोऽपि, नवरं द्वेज्ञाने अभ्यधिके, अजघन्यानुत्कृस्थितिको यथा उत्कृष्टस्थितिको, नवरं स्थित्या त्रिस्थानपतितः जघन्यगुण-जहण्णठियाणं वेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) किस कारण से भगवन् ! ऐसा कहा है कि जघन्य स्थिति वाले द्वीद्रियों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा । जरण्णाठइए बेदिए) जधन्य स्थिति वाला दीन्द्रिय (जहण्णठिश्यस्त वेइंदियस्स) जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रिय से (व्वट्टयाए तुल्ले) द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य है। ओणाहणयाए चउठाणवडिए) अवगाहना से चतु:स्थानपतित है (ठिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य है । वण्णगंध रस फास पज्जवेहि) वर्ण, गॅध, रस, स्पर्श के पर्यायों से(दोहिं अण्णाणेहिं) दो अज्ञानों से (अचखुदसणपज्जवेहि य) और अच.. क्षुदर्शन के पर्यायों से (छहाणवडिए) षस्थानपतित है (एवं उक्कोसठिइए वि) इसीप्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाला भी (नवरं दो णाणा अन्भहिया) विशेष यह कि उत्कृष्ट स्थिति वाले में दो ज्ञान अधिक कहने चाहिए (अजहएणमणुक्कोसठिए जहा उस्कोलठिइए णवरं ठिईए तिहाणपडिए) मध्यन स्थिति वाला उत्कृष्ट स्थिति वाले के समान विशेषता यह कि स्थिति की अपेक्षा ले त्रिस्थानपतित है पज्जवा पण्णत्ता) भगवन् ॥ २णे सेभ यु धन्य स्थितिवादीन्द्रियोना मनन्त पर्याय ४६॥ छ ? (गोयमा । जहण्ण ठिइए बेइंदिर) ४३न्य स्थिति पाणा द्वीन्द्रिय (जहण्णठिइयस्स वेइंदियस्स) धन्य स्थितिवादीन्द्रियथी (दव्वट्टयाए तुल्ले) द्रव्यनी मपेक्षाये तुक्ष्य छ (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रशोथी तुझ्य छ (ओगाहणट्टयाए चउढाणवडिए) म नाथी तु स्थान पतित छ (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुझ्य छ (वण्णगंधरसफासपज्जवेहि) वाणु, ध, २स २५शना पर्यायाथी (दोहि अण्णाणेहिं) मे सज्ञानाथी (अचखुदसणपज्जवेहि य) मने अयश नना पर्यायाथी (छटाणवडिए) ५८स्थान पतित छे (एवं उक्कोसठिइए वि) से प्रारे कृष्ट स्थितिमा पY (नवरं दो णाणा अमहिया) विशेष से ष्ट स्थितिवाणामा मे ज्ञान माथि ४i नये. (अजहण्णमणुकोसठिइए जहा उकोसठिइए णवरं ठिईए तिद्वाणवडिए) मध्यमस्थिति पण कृष्ट स्थिति વાળાના સમાન છે. વિશેષતા એ કે સ્થિતિની અપેક્ષાએ ત્રિસ્થાન પતિત છે
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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