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प्रशापनास्त्रे वडिए आमिणिबोहियणाणपज्जवेहिं तुल्ले सुयनाणपज्जवेहिं छट्राणवडिए अचक्खुदंसणपज्जवहिं छटागवडिए, एवं उक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि अजहण्णमणुकोसाभिणियोहियणाणी वि एवं, नवरं सटाणे छाणवडिए एवं सुयनाणी वि सुय अन्नाणी वि अचानुदंसणी वि पावरं जत्थ णाणा तत्थ अण्णाणा नस्थि जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा नत्थि जत्थ दसणं तत्थ णाणावि अण्णाणावि एवं तेइंदियाणवि चरिंदियाण वि एवं चेव जवरं चक्खुदसणं अमहियं ॥ १०९ ॥
छाया-जघन्यावगाहनकानां भदन्त ! द्वीन्द्रियाणां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यावगाहनकानां द्वीन्द्रियाणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यावगाहनको द्वीन्द्रियो जघन्यावगाहनकस्य द्वीन्द्रियस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगा
बीद्रियादिपर्यायवक्तव्यता शब्दार्थ-(जहण्णोगाहणगाणं संते वेइंदियाणं पुच्छा!) हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? (गोयमा, अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं ? (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चह-जहणणोगाहणगाणं बेइंदियाण अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) किस हेतु से हे सगवन् ! ऐसा कहा है कि जघन्य अवगा. हना वाले द्वीन्द्रियो के अनन्त पर्याय कहे हैं (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णोगाहणए वेइंदिए जहण्णोगाहास्त वेइंदियस्स व्वट्ठयाए तुल्ले) जघन्य अवगाहना वाला दीन्द्रिय सुघन्य अवगाहना वाले दीद्रिय जीव से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों
| કીન્દ્રિયાદિ પર્યાય વક્તવ્યતા शहाथ-(जहण्णोगाहणगाण भंते । वेइंदियाण पुच्छा ?) भावन् ! धन्य साडनावाणादीन्द्रिय छवाना टला पर्याय छ ? (गोयमा । अणंता पज्जवा पण्णता ?) गौतम । अनन्त पर्याय ४ा छ १ (से केणट्रेणं भंते । एवं बुचई जहण्णोगाहणगाणं बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) लगवन् ४या तुथी એમ કહ્યું છે કે જઘન્ય અવગાહનાવાળા દ્વીદ્ધિના અનન્ત પર્યાય કહ્યા છે (गोयमा!) 3 गौतम (जहण्णोगाहणए बेइंदिए जहण्णोगाहणस्त वेइंदियस्स व्व याए तुल्ले) धन्य अगाडनावादीन्द्रिय पधन्य मानावादीन्द्रिय थी द्रव्यनी अपेक्षाये तुभ्य (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रशानी अपेक्षा तुल्य