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प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.८ पृथ्वोकायिकादीनां पर्यायनिरूपणम् ६७१ उत्कृष्टस्थितिकोऽपि अनधन्यानुस्कृष्टस्थितिकोऽपि एवञ्चन, नवरं स्वस्थाने त्रि स्थानपतितः, जघन्यगुणकालकानां भदन्त ! पृथिवीयायिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् के.नार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यगुणकालकानां पृथिवीकायिका नामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यगुणकालयः पृथिवीकायिको जघन्यगुणकालकस्य पृथिवीकायिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया गंध, रस और स्पर्श के पर्यायर्यों से (भइअण्णाण पन्जदेहि) मतिअज्ञान के पर्यायों से (सुयअण्णाणपज्जवेहिं) श्रुत-अज्ञान के पर्यायों से (अचक्खुदंसणपज्जवेहिं) अचक्षुदर्शन के पर्यायों से (छट्ठाणचडिए) षट्स्थानपतित है (एवं उक्कोसठिए वि) उत्कृष्ट स्थिति वाला भी ऐसा ही (अजहण्णमणुक्कोसठिहए वि एवं चेव) मध्यम स्थिति वाला भी ऐसा हो (नवरं सट्टाणे तिहाणबडिए) विशेष यह कि स्वस्थान में भी त्रिस्थानपतित है ___ (जहण्णगुणकालयाणे भले ! पुढविकाइयाणं पुच्छा?) हे भगवन ! जघन्यगुण कृष्ण पृथ्वीकायिकों की पृच्छा ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं चुच्चइ-जहण्णगुणकालगाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है कि जघन्य गुण कृष्ण पृथ्वी कायिकोंके अलन्त पर्याय हैं ? (गोयमा ! जहण्णगुणकालए पुढविकाइए जहष्णगुणकालियस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) जघन्यगुण काला पृथ्वीकायिक जघन्यगुण काले २५ ना पायाथी (मई अण्णाण पजवेहिं) भति मज्ञानना पर्यायाथी (सुय अण्णाण पज्जवेहिं) श्रुत मज्ञानना पर्यायी (अचक्खुदंसण पज्जवेहिं) मन्यनु शईनना पर्यायाथी (छद्राणवडिए) ५८स्थान पतित छे (एवं उक्कोसठिइए वि) Gष्ट स्थितिवाणाना सधनु ४थन ५५ मेरी प्रमाणे छ (अजहण्ण मणु: कोसठिइए वि एव चेव) मध्यम स्थितियाणा पy (नवर सट्टाणे तिट्ठाणवडिप) વિશેષ એકે સ્વસ્થાનમાં પણ ત્રિસ્થાન પતિત છે. __ (जहण्णगुणकालयाणं भंते । पुढविकाइयाणं पुन्छा) हे भगवन् । धन्य गुष्य ४ पृथ्वी यिोनी छ ? (गोयमा । अणता पज्जया पण्णत्ता) ड गौतम । मनन्त पर्याय ४६ छ (से केणट्रेणं भते । एवं बुन्चह-जहण्णगुणकालयाणं पुढविकाइयाण अणता पज्जवा पण्णत्ता ?) है, सपन ४या ४१२२ मे ४४ बाय छ है ४धन्य गुण ४ पृथ्वी यिहाना अनन्त पर्याय छ ? (गोयमा ! जहण्णगुणकालर पुढविकाइए जहणागक लेयाम पुढपिकाइयस्स दबट्टयाए तुल्ले) धन्य