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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ५ सू.८ पृथ्वीकायिकादीनां पर्यायनिरूपणम् ६६९ जवन्यावगाहनकानां पृथिवीकायिका नामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जबन्यावगाहनकः पृथिवीकायिको जघन्यावगाहनकस्य पृथिवीकायिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया तुल्यः, स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः, द्वाभ्याम् अज्ञानाभ्याम् अचक्षुर्दर्शनःपर्यवैश्व पटू स्थानपतितः, एवम् उत्कृष्टावगाहनकोपि, जघन्यानुत्कृष्टावगाहनकोऽपि एयश्चैव पण्णता ?) हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिकों के कितले पर्याय हैं ? (गोयमा ! अणंता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गये हैं (से केणटेणं भंते ! एवं चुच्चइ-जहणोगाणाणं पुढधिकाझ्याणं अणंता पज्जया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है कि जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिकों के अनन्त पर्याय होते है ? (गोयमा ! जहण्णोगाहणए पुढविकाइए जहण्णोगाहणस्त पुढविकाइयरल दव्यट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! जघन्य अवगाहना वाला पृथ्वीकायिक जघन्य अवगाहना वाले दूसरे पृथ्वीकायिक से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य हैं (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है (ओगाहणशए तुल्ले) अवगाहना से तुल्य है (ठिईए तिहाणवडिए) स्थिति से त्रिस्थानपतित है (वण्ण-गंध रस फासपज्जवेहिं) वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के पर्यायों से (दोहि अण्णाणेहिं) दो अज्ञानों से (अचवखुदंसण पजवेहि य ) और अचक्षुदर्शन के पर्यायों से (छठाणवडिए) पटूस्थानपतित है। (एवं उक्कोसोगाहणए वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना भगवन् ! ४३न्य म नापाना पृथ्वीविडीना टया पर्याय छ? (गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम | मनन्त पर्याय ह्या छ (से केणद्वेणं भते । एवं वुच्चइ जहण्णोगाहणाण पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णता?) लगवन् २२९ એમ કહ્યું કે જઘન્ય અવગાહનાવાળા પૃથ્વીકાચિકેના અનન્ત પર્યાય થાય છે? (गोयमा ! जहह्मणोगाहणए पुढविकाइए जहण्णोगाहणस्स पुढविकाइयास व्ययाए तुल्ले) गौतम । धन्य मानावाजा पृथ्वीयि४ घन्य अपनापाणा ilan वीयि४थी द्रव्यनी अपेक्षाये तुल्य छ (पएसद्वयाए तुल्ले) प्रशानी अपेक्षा तुइय छे (ओगाहणट्ठया तुल्ले) मानाथी तुस्य छे (ठिई तिहाणवडिा) स्थितिथी त्रिस्थान पतित छे (वण्ण, गंध, रस, फाम पन्जवेहि) वणु', आध, २४, २५ना पर्यायाथी (दोहि अण्णाणेहि) मे नानाथी (अचवखुदंसण पज्जवेहि) गने २मयदर्शनना पर्यायोथी (छट्टाणवडिप) ५८स्थान पतित थे, (एवं उद्योसोगोहगए वि) मे रीत , मानापा ५g (अजः
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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